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________________ अरिष्टनेमिः पूर्वभव संसार की असारता देखकर राजा के मन में वैराग्य हुआ। प्रीतिमती के पुत्र पद्म को राज्य देकर प्रीतिमती, सूर, सोम, व विमलबोध के साथ अपराजित ने दीक्षा ग्रहण की।४ उत्कृष्ट तप संयम की आराधना कर अन्तिम समय में संथारा कर आयु पूर्ण किया। दिगम्बर ग्रन्थों में : __ दिगम्बर आचार्य जिनसेन और आचार्य गुणभद्र ने भगवान् अरिष्टनेमि के पाँच पूर्व भव बताये हैं। उनके पश्चाद्वर्ती जितने भी दिगम्बर परम्परा के लेखक हुए हैं, सभो ने इन्हीं आचार्यों का अनुसरण किया है। उसमें सर्वप्रथम अपराजित राजा का भव बताया है । वह इस प्रकार है :___जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में शीतोदा नदी के दक्षिणी तट पर सुपद्म नामक देश था । उस देश में सिहपुर नामक नगर था । वहाँ का राजा अर्हद्दास था ।५ जिनदत्ता उसकी रानी थी। एक दिन महारानी राजमहल में सोयी हुई थी। उस समय उसे लक्ष्मी, हाथी, सिह, सूर्य और चन्द्र ये पांच शुभ स्वप्न दिखलाई दिये।६ रानी अत्यन्त प्रसन्न हुई। सवा नौ मास के पश्चात् पुत्र का जन्म हुआ और उसका नाम अपराजित रखा गया। युवावस्था आने पर "प्रीतिमती' प्रभति अनेक राजकन्याओं के साथ उसका विवाह सम्पन्न हुआ। ८३. त्रिषष्टि० ८।१।४४३, ४४७ ८४. त्रिषष्टि० ८।११४४६-४५० ८५. (क) द्वीपेऽत्रैव सुपद्मायां, शीतोदायास्त्वपाक्तटे । अभूत् सिंहपुरे भूभृदर्हद्दासो महाहितः ।। -हरिवंश पुराण ३४।३। पृ० ४१६ (ख) उत्तरपुराण ७०।४ ८६. (क) हरिवंशपुराण ३४।४। पृ० ४१६ (ख) उत्तरपुराण ७०।८। ८७. (क) अपराजित इत्याख्यां स परैरपराजितः । पितृभ्यां लभिमतो द्यावापृथिव्योः प्रथितस्ततः ॥ -हरिवंशपुराण ३४।५ पृ० ४१६ (ख) उत्तरपुराण ७०६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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