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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण एक दिन राजा अर्हद्दास अपने परिवार के साथ भगवान् विमलवाहन को वन्दन करने हेतु मनोहर नामक वन में पहुँचा।" विमलवाहन के प्रभावशाली प्रवचन को श्रवण कर अन्य पाँचसौ राजाओं के साथ अर्हद्दास ने दीक्षा ग्रहण की। अपराजित कुमार को भी उस समय सम्यग्दर्शन की उपलब्धि हुई ।८९ एक दिन अपराजित राजा ने सुना कि गंधमादन पर्वत पर जिनेन्द्र विमलवाहन और पिता अर्हद्दास मुक्त हो गए हैं । यह सुनकर राजा ने अष्टमभक्त (तेला) की तपश्चर्या की।९० राजा धर्म साधना कर रहा था कि उस समय आकाश मार्ग से दो चारण-ऋद्धिधारी मुनि पधारे।९१ राजा ने मुनियों को वन्दन किया। उनके चमकते हए चेहरे को देखकर राजा के मन में अत्यधिक अनुराग उत्पन्न हुआ। उसे ऐसा अनुभव होने लगा कि मैंने पूर्व में कहीं इन मुनियों को देखा है । राजा ने मुनिराज के सामने जिज्ञासा प्रस्तुत की। दोनों मुनियों में ज्येष्ठ मुनि ने समाधान करते हुए अपने पूर्व भव का कथन इस प्रकार किया राजन् ! पश्चिम पुष्कराध के विदेह में गण्यपुर नामक नगर था। वहाँ का राजा सूर्याभ था, उसकी रानी का नाम धारिणी था। उसके चिन्तागति, मनोगति और चपलगति नामक तीन पुत्र थे ।१२ ८८. उत्तर पुराण ३४।८।४१६ ८६. (क) प्रवव्राज नृपोऽस्यान्ते पञ्चराजशतान्वितः। बभ्रऽ पराजितो राज्यं सम्यक्त्वं चैव निर्मलम् ॥ -हरिवंश पुराण ३४18 (ख) उत्तरपुराण ७०।१६ ६०. जिनेन्द्रपितृनिर्वाणं गन्धमादनपर्वते । श्रुत्वा कृत्वाऽष्टमं भक्तं कृतनिर्वाणभक्तिकः । -हरिवंशपुराण ३४६० ६१. (क) हरिवंशपुराण ३४।१२, पृ० ४२० । (ख) उत्तरपुराण ७०।२३ ६२. पुत्रास्त्रयस्तयोश्चिन्तामनश्चपलपूर्वकाः । ___ गत्यन्ता वेगवन्नास्ते स्नेहवन्तः सुपौरुषाः ।। ___-हरिवंशपुराण ३४।१७। पृ० ४२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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