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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण राजाओं ने क्रोधाविष्ट होकर उसे युद्ध के लिए ललकारा । अपराजित कुमार ने ऐसी अद्भुत युद्ध कला का प्रदर्शन किया कि सभी राजागण चकित हो गये । अपराजित के मामा राजा सोमप्रभ ने अपराजित को पहचान लिया। अपराजित ने भी अपना असलीरूप प्रकट कर दिया। सभी राजा सन्तुष्ट हए। उल्लास व उत्साह के क्षणों में प्रीतिमती का विवाह अपराजित के साथ सम्पन्न हुआ। दोनों एक दूसरे को पाकर प्रसन्न थे।७५ ।। । कुछ दिनों तक अपराजित वहां रहा फिर पिता का सन्देश आने से अपनी सभी पत्नियों को लेकर अपने घर लौट गया ।८० पूर्वभव के अपराजित के दो भाई मनोगति और चपलगति, माहेन्द्र देवलोक में देव हए थे। वे दोनों वहाँ की आयु पूर्ण कर अपराजित कुमार के सूर और सोम नामक लघु-भ्राता हुए। किसी दिन अपराजित के पिता हरिनन्दी ने अपराजित को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण की और मुक्ति प्राप्त की।१ एक दिन अपराजित राजा भ्रमण करने के लिए उद्यान में गया। वहाँ अनगदेव नामक सार्थवाहपुत्र भी आया हुआ था। उसका विराट् वैभव देखक र राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसके मन में विचार आया कि मेरे राज्य में श्रेष्ठी लोग भी कितने समद्ध और सूखी हैं।२ दूसरे दिन राजा घूमने के लिए बाहर निकला । राजा ने देखाराजपथ पर सैकड़ो व्यक्तियों से घिरी हई एक अर्थी जा रही है। राजा ने अनुचरों से पूछा- यह कौन है ? अनुचर ने निवेदन किया--राजन् । यह वही अनंगदेव है जो कल उद्यान में क्रीडा कर रहा था । अकस्मात् व्याधि होने से इसकी मृत्यु हो गई है। ७९. ततोऽपराजितप्रीतिमत्योरन्योऽन्य रक्तयोः । चक्र विवाहं पुण्येऽह्नि भूभुजा जितशत्रुणा ॥ --त्रिषष्टि० ८।६।४१५ ८०. वही० ८।१।४१६।४२० ८१. अथान्यदा हरिणंदी राज्यं न्यस्यापराजिते । प्रवव्राज तपस्तप्त्वा प्रपेदे च परं पदम् ॥ -त्रिषष्टि० ८।११४३४ ८२. त्रिषष्टि० ८।१।४३८, ४४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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