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________________ अरिष्टनेमिः पूर्वभव केवली भगवान् के मुखारविन्द से यह भविष्यवाणी सुनकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई । वहाँ से भी वे दोनों आगे बढ़े। उस समय जयानन्द नगर में जितशत्र राजा राज्य करता था। रत्नवती का जीव अपनी आयु पूर्ण कर जितशत्र की पुत्री प्रीतिमती के रूप में उत्पन्न हआ था।६ प्रीतिमती प्रकृष्ट प्रतिभा की धनी थी। राजा ने प्रीतिमती के लिए स्वयंवर मंडप की रचना की । अपराजित ने स्वयंवर के समाचार सुने । स्वयंवर में सैकड़ों राजा महाराजा आएंगे, कोई मुझे पहचान न ले एतदर्थ अपराजित गुटिका के द्वारा साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर स्वयंवर में पहचा। स्वयंवर में अनेकों राजा और राजकुमार आये थे। राजकुमारी को कोई भी पसन्द न आया और न वे राजकुमारी के प्रश्नों का ही समाधान कर सके। राजकुमारी प्रीतिमती की दृष्टि ज्योंही अपराजित राजकुमार पर पड़ी, त्योंही पूर्वभवों के स्नेहसम्बन्ध के कारण उसके हृदय में प्रीति उमड़ पड़ी। उसने राजकुमार के सामने जटिल से जटिल प्रश्न रखे, अपराजित कुमार ने क्षण भर में सभी प्रश्नों का समाधान कर दिया।८ प्रीतिमती ने अपराजित के गले में वरमाला डाल दी। अपराजित के विद्र प रूप और मलिन वस्त्रों को देखकर सभी ७५. देशनान्ते तु तं नत्वा पप्रच्छेत्यपराजितः । किं भव्योऽहमुताभव्य आचख्यौ चेति केवली ॥ भव्योऽसि भविता चाहन् द्वाविंशः पंचमे भवे । त्वन्मित्रं गणभृच्चायं जंबूद्वीपस्य भारते ।। त्रिषष्टि०८॥११३६६ ७६. त्रिषष्टि० ८।१।३७० ७७. गुटिकायाः प्रयोगेण प्राकृतं रूपमादधे । -त्रिपष्टि० ८।११३८० ७८. अभ्रच्छन्नमिवादित्यं दुर्वेषमपि वीक्ष्य तम् । प्राग्जन्यस्नेहसम्बन्धात् प्रीतिं प्रीतिमती दधौ ।। पूर्वपक्ष प्रीतिमती प्राग्जग्राह तथैव हि । तां द्राग्निरुत्तरीकृत्य पराजिग्येऽपराजितः ।। ----त्रिषष्टि० ८।१।४०३-४. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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