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________________ ४४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण विमलबोध ने नगर की प्रसिद्ध गणिका कामलता से कहातुम जाकर राजा को सूचना करो कि एक महान् वैद्यराज आया हुआ है । उसके पास ऐसी जादूई दवा है कि कुछ ही क्षणों में व्रण पूर्ण रूप से ठीक हो जायेगा । गणिका ने सूचना की। राजा ने अपराजित और विमलबोध को बुलाया । अपराजित ने मणि को धोकर राजा को पानी पिलाया, उसके पानी में मूलिका को घिसकर राजा के व्रण पर लगाया । राजा पूर्ण स्वस्थ हो गया। राजा ने परिचय पूछा तो विमलबोध ने विस्तार से अपराजित का परिचय दिया। राजा ने उसे गले लगाते हए कहा-यह तो मेरे मित्र का पुत्र अपराजित है। प्रसन्न होकर राजा ने अपनी रंभा नामक कन्या का विवाह अपराजित के साथ कर दिया। कुछ दिन वहाँ रहकर अपराजित ने आगे प्रस्थान किया। दोनों कुडपुर नगर में पहुँचे । वहाँ पर केवलज्ञानी भगवान विराज रहे थे। भगवान् को वन्दन नमस्कार कर अपराजित ने प्रश्न किया-भगवन् ! मैं भव्य हूँ या अभव्य हूँ ? समाधान करते हुए भगवान् ने कहा-तुम दोनों भव्य हो । अपराजित तो भविष्य में जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में अरिष्टनेमि नामक बावीसवां तीर्थंकर होगा, और विमलबोध अरिष्टनेमि का प्रथम गणधर वरदत्त होगा। ७२. स प्रविश्यैकेन पुसा हतश्छुरिकाच्छलात् । राज्ञो राज्यधरश्चास्या पुत्रादिर्नास्ति कोऽपि हि ॥ आत्मरक्षी भवन्नद्य तेनायमखिले पुरे । भ्रांम्यति व्याकुलो लोकस्तस्यायं तुमुलो महान् ।। ___-त्रिषष्टि० ८।१।३४६-५० ७३. मणिप्रक्षालनजलं स भूपतिमपाययत् । मूलिकां तज्जलैघृष्ट्वा नृपाघाते न्यधत्त च ।। -वहीं. ८।११३५७ ७४. इत्युक्त्वा कन्यकां रंभां रूपाद्रभामिवापराम् । उपरोध्य ददौ तस्मै गुणक्रीतो नरेश्वरः ।। -त्रिषष्टि० ८।१।३६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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