________________
४३
अरिष्टनेमिः पूर्वभव उधर भटकने लगा और उच्च स्वर से अपने मित्र को पुकारने लगा किन्तु वहीं पर भी अपराजित का पता न लगा।"
इतने में दो विद्याधर वहाँ आये। उन्होंने विमलबोध से कहा'आप घबराइए नहीं। हम आपके मित्र अपराजित का पता बताते हैं- इस जंगल में भुवनभानु नामक एक महान् ऋद्धिवाला विद्याधर रहता है। उसके कमलिनी और कुमुदिनी नामक ये दो पुत्रियाँ हैं। एक विशिष्ट ज्ञानी ने बताया कि इन कन्याओं का पति अपराजित राजकुमार होगा और वह अमुक दिन इस जंगल में आयेगा। यह भविष्यवाणी सुनकर हमारे स्वामी ने आप दोनों को लेने के लिए हमें यहाँ भेजा । जब हम यहाँ आये तब आप अपराजित के लिए पानी लेने गये हुए थे। हम अकेले अपराजित को लेकर अपने स्वामी के पास गये । हमारा स्वामी अपराजित को देखकर बहत ही प्रसन्न हुआ। उसने उनके सामने दोनों लड़कियों के विवाह का प्रस्ताव रखा किन्तु अपराजित कुमार तुम्हारे विरह के कारण अत्यन्त दुःखी थे अतः उन्होंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। रह रहकर वे तुम्हारा ही नाम रटने लगे, अतः हमारे स्वामी ने शीघ्र ही हमें तुम्हारे पास भेजा है। तुम हमारे साथ चलो।" विमलबोध मित्र के समाचार जानकर बहुत ही प्रसन्न हुआ। वह उनके साथ चल दिया।" अपराजित से मिलकर उसे बहुत आनन्द हुआ। दोनों कन्याओं के साथ अपराजित का पाणिग्रहण अत्यन्त उल्लास के क्षणों में सम्पन्न हुआ। कुछ दिनों तक दोनों वहाँ रहे, फिर यात्रा के लिए आगे चल दिये।
वे दोनों श्रीमन्दिरपुर नगर में पहुँचे । किन्तु वहाँ नगर निवासियों के चेहरे पर अजीब घबराहट देखकर विचारने लगेबात क्या है ? किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि राजा का शत्र असावधानी से राजमहल में चला गया और उसने राजा पर शस्त्र से आक्रमण कर दिया जिससे राजा पीड़ित है। राजा की पीड़ा से नगरनिवासी दुःखी हैं।७२
७०. त्रिषष्टि. ८।१।३२२-३३३ ७१. त्रिषष्टि० ८।१।३३४-३४४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org