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अरिष्टनेमिः पूर्वभव
३६ ____ अपराजित आपका कथन सत्य हो सकता है, पर यह मेरी शरण में आ चूका है। मैं इसका परित्याग नहीं कर सकता ।५८
सेनाध्यक्ष ने अपराजित को युद्ध के लिए आह्वान किया। आह्वान को स्वीकार कर अपराजित ज्यों ही युद्ध के मैदान में आया और उसने अपनी यद्ध-कला का प्रदर्शन किया त्यों ही वह सम्पूर्ण सेना नौ दो ग्यारह हो गई। सेनाध्यक्ष ने अपने राजा कौशलपति के पास जाकर सारा वृत्त सुनायां। राजा कौशलपति भी ससैन्य वहाँ पहुँचा किन्तु वह भी अपराजित के सामने टिक न सका। अपराजित के अपार पराक्रम को देखकर वह चकित हो गया। मंत्री ने राजा से कहा- 'क्या इस उदभट वीर को आपने नहीं पहचाना ? यह तो आपके मित्र का पूत्र अपराजित है। राजा ने यूद्ध बन्द किया और प्रम से उसे गले लगाया। राजा अपराजित को लेकर राजप्रासाद में आया और अपनी पुत्री कनकमाला का उसके साथ विवाह कर दिया ।५८
एक दिन अर्धरात्रि में अपराजित और विमलबोध ने विचार किया-सारे दिन राजमहल की चहारदीवारी में ही बन्द रहते हैं, तो इस समय कहीं बाहर घूमने चलना चाहिए।६० चन्द्रमा की निर्मल चाँदनी छिटक रही थी। दोनों अपने शस्त्र-अस्त्र लेकर राजमहल से बाहर निकले, और जंगल में पहुँचे। जंगल में कहीं दूर से किसी नारी का करुण-क्रन्दन उनको सुनाई दिया। वे दोनों विचारने लगे—इस आधी रात में नारी के रुदन की ध्वनि कहां से आरही है ? वे शब्दवेधी बाण की तरह उसी दिशा में आगे बढ़े।' कुछ दूर
५८. स्मित्वा स्माह कुमारोऽपि शरणं मामुपागतः । शक्रेणापि न शक्योऽसौ हन्तुमन्यैस्तु का कथा ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।२८० ५६. कन्यां कनकमालाख्यां स्वां कौशलमहीपतिः । जातानन्दो हरिण न्दिनन्दनायान्यदा ददौ ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।२६२ ६०. त्रिषष्टि० ८।१।६३ ६१. काप्येषा रोदिति स्त्रीति निश्चित्य स कृपानिधिः । अनुशब्दं ययौ वीरः शब्दापातीव सायकः ।।
--त्रिषष्टि० ८।१।२६५
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