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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण मनि ने अपने विशिष्ट ज्ञान से बताया कि-यह धनकुमार इस भव से लेकर उत्तरोत्तर उत्कृष्ट नौ भव करेगा और नौवें भव में जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में बावीसवां अरिष्टनेमि नामक तीर्थङ्कर होकर शाश्वत सिद्धि प्राप्त करेगा। ४ मुनि की भविष्यवाणी सुनकर सभी को परम प्रसन्नता हई।" एक समय धनकुमार और धनवती क्रीडा करने के लिए एक रमणीय सरोवर के किनारे पहुँचे। क्रीडा करते हुए उनकी दृष्टि यकायक अशोक वृक्ष के नीचे गई जहां पर एक मुनि मूछित अवस्था में पड़े हुए थे। वे दोनों उसी समय मुनि के पास आये, उनके घरों से रक्त बह रहा था। ओष्ठ आदि सूखे हुए थे। भक्ति भावना से विभोर होकर उन्होंने मुनि का उपचार किया। मूर्छा दूर हुई, मुनि स्वस्थ बने । राजकुमार ने विनम्रवाणी में प्रश्न किया-भगवन् ! आपकी यह अवस्था कैसे हुई ? आपका नाम क्या है ? १६ मुनि ने बताया-मेरा नाम मुनिचन्द्र है । * मैं सार्थ के साथ एक १४. मनोऽवधिभ्यां स मुनित्विाख्यन्ते सुतो धनः । भवेनानैष नवोत्कृष्टोत्कृष्टान् भवान् गमी । भवे च नवमेऽरिष्टनेमिर्नाम्नेह भारते । द्वाविंशस्तीर्थकृद्भावी यदुवंशसमुद्भवः ।। ८।१।१०६-१०७ (ख) भव भावना ३०६-३०६ पृ० २७ १५. वहीं ८।१।१०८ १६. तत्राशोकतरोर्मूले शान्तो रस इवांगवान् । धर्मश्रमतृषाक्रान्तः शुष्कताल्वोष्ठपल्लवः ।। स्फुटत्पादाब्जरुधिरसिक्तोर्वीको विमुच्छितः । धनवत्या मुनिः कोऽपि पतन् पत्युः प्रदर्शितः ॥ ___ -- त्रिषष्टि० ८।११११२-११३ १७. संभ्रमादभिसृत्योभी मुनि तमुपचेरतुः । शिशिरैरुपचारैस्तौ चक्रतुश्चाप्तचेतनम् ॥ तं च स्वस्थं प्रणम्योचे धनो धन्योऽस्मि सर्वथा। कल्पद्रुम इवावन्यां मया प्राप्तोऽसि संप्रति ॥ -त्रिषष्टि ० ८।११४।११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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