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________________ २६ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण रूप तो इतना अधिक सुन्दर है कि उसका लाखवां हिस्सा भी मैं चित्रित नहीं कर सका हूँ। राजकुमारी धनवती ने भी चित्र देखा। वह उस पर मुग्ध हो गई। उसने उसी समय यह दृढ़ संकल्प किया कि "इस जीवन में मैं धनकुमार के अतिरिक्त अन्य किसी भी व्यक्ति के साथ पाणिग्रहण नहीं करूगी।" किसो समय राजा सिंह का एक दूत कार्यवश राजा विक्रम के दरबार में गया। उसने वहाँ पर युवराज धनकुमार को देखा। धनकुमार की सौन्दर्य-सुषमा को देखकर वह प्रभावित हुआ। लौटकर उसने राजा सिंह से निवेदन किया। राजा सिंह ने जब यह सुना तो उसे बहुत ही प्रसन्नता हुई । उसने दूत को कहा तुम्हीं जाकर राजा विक्रम से निवेदन करके राजकुमारी के साथ धनकुमार का सम्बन्ध निश्चित करो। किसी गुप्तचर ने राजकुमारी धनवतो को सूचना दी कि दूत तुम्हारा सम्बन्ध निश्चित करने के लिए जा रहा है। धनवती ने अपनी अन्तरंग सहेलो के द्वारा दूत को अपने पास बुलाया और अपने हृदय के उमड़ते हुए भावों को पत्र में लिखकर दूत को दिया। दूत ने वहां जाकर प्रथम राजा विक्रम को राजा सिंह का सन्देश सुनाया,° फिर एकान्त में धनकुमार को लेजाकर राजकुमारी धनवती का प्रेम-पत्र दिया। राजकुमारी के स्नेह-स्निग्ध पत्र को पढ़कर धनकुमार प्रेम से पागल हो गया। उसने भी उसी समय ८. (क) अयं खलु मयालेखि युवा निरुपमाकृतिः । धनोऽचलपुराधीशश्रीविक्रमधनात्मजः ॥ प्रत्यक्ष प्रेक्ष्य यस्तं हि प्रेक्षते चित्रवर्तिनम् । स कूटलेखक इति मां निन्दति मुहुर्मुहुः ॥ -त्रिषष्टि० ८।११३५-३६, (ख) भव-भावना पृ० १२ ६. अर्पणीयो धनस्यायं मल्लेख इति भाषिणी । धनवत्यार्पयत्तस्य लिखित्वा पत्रकं स्वयम् ।। -त्रिषष्टि ० ४।१।६६ १०. सोऽप्यूचे कुशलं सिंह इह मां प्राहिणोत्पुनः सुतां धनवती दातु त्वत्सुताय धनाय सः ॥ ---- त्रिषष्टि० ८।१।७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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