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अरिष्टनेमिः पूर्वभव
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__ स्वप्न देखकर रानी अत्यन्त प्रमुदित हुई। उसने स्वप्नविशेषज्ञ के सामने स्वप्न की सम्पूर्ण वार्ता कही । स्वप्न विशेषज्ञ ने कहा"तुम्हारे प्रतिभावान् पुत्र होगा, नौ बार वृक्ष रोपने की बात का रहस्य मेरी मति की गति से परे है।"५
समय पूर्ण होने पर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम धनकुमार रखा गया । उस सुषमामय गुलाबी शैशव पर जिसकी भी नजर टिकी, टिकी ही रह गई, जैसे जादू से बंध गई हो। उसकी सुकुमारता उसकी सरलता, उसकी भोली-भाली लुभावनी सूरत और मीठी बोली सभी को मुग्ध कर लेती थी। एक दिन वह बचपन की देहली को पारकर यौवन के रंग-मंच पर पहुँच गया।
उस समय कुसुमपुर का अधिपति सिंह राजा था। उसकी रानी का नाम विमला था, और पुत्री का नाम धनवती था। धनवती भी रूप-सौन्दर्य में अप्सरा से कम नहीं थी। एकदिन वह अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करने के लिए उद्यान में गई । प्राकृतिक सौन्दर्यसुषमा के सामने उसे कृत्रिम सौन्दर्य फीका लगने लगा। उद्यान में परिभ्रमण करते हुए उसने अशोक वृक्ष के नीचे बैठे हुए एक चित्रकार को देखा। कमलिनी नामक दासी उसके पास गई। उसने उसके पास धनकूमार का चित्र देखा तो दासी ठगी-सी रह गई। क्या विश्व में इतना सुन्दर पुरुष हो सकता है ?" उसने चित्रकार से जिज्ञासा की कि बताओ यह चित्र किसका है ? तब चित्रकार ने विस्तार से धनकुमार का परिचय दिया, और कहा-"धनकुमार का
५. (क) होही पहाणपुत्तो तुह एयं सुमिणएण बुज्झामो। नववारारोवणवइअरं तु जं तं न याणामो ।।
-भव-भावना १८। पृ० ६ (ख) त्रिषष्टि० ८।१।१५। :. अकारि दिवसे पुण्ये धन इत्यभिधापि च ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।१६ (ख) भव-भावना ७. रूपेण विस्मिता तेन सा प्रोचे चित्रकन्नरम् । कस्येदमद्भुतं रूपं सुरासुरनरेष्वहो ।
-त्रिषष्टि० ८।१।३१
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