________________
तीर्थंकर और वासुदेव
११
लम्बाई, चौड़ाई और आयुष्य के सम्बन्ध में प्रकाश डाला है । समवायांग में बलदेव- वासुदेव का परिचय देते हुए लिखा है
I
" बलदेव और वासुदेव दशारवंश के मंडन सदृश थे । वे उत्तम थे, मध्यम थे, प्रधान थे, और वे ओजस्वी, तेजस्वी, बलशाली और सुशोभित शरीर वाले थे । वे कान्त, सौम्य, सुभग, प्रियदर्शन, सुरूप और सुखशील थे, उनके पास प्रत्येक व्यक्ति सुख रूप से पहुँच सकता है । सभी लोग उनके दर्शन के पीपास हैं । वे महाबली हैं । वे अप्रतिहत और अपराजित हैं । शत्रु के मर्दन करने वालों तथा हजारों शत्रुओं का मान नष्ट कर देने वाले हैं । दयालु, अमत्सरी, अचपल और अचण्ड हैं । मृदु मंजुल, और मुस्कराते हुए वार्तालाप करने वाले हैं। उनकी वाणी गंभीर, मधुर और सत्य होती है । वे वात्सल्य युक्त होते हैं, शरण योग्य हैं। उनका शरीर लक्षण व चिह्न युक्त तथा सर्वाङ्ग सुन्दर होता है । वे चन्द्र की तरह शीतल हैं, ईर्ष्या रहित हैं । प्रकाण्ड दंडनीति वाले हैं । गंभीर दर्शन वाले हैं । बलदेव तालध्वज और वासुदेव गरुड़ध्वज हैं । वे महान् धनुष्य का टंकार करने वाले हैं । वे महान् बल में
१०. तिविट्ठे यदुवि य सयंभूपुरिसुत्तमे पुरिससीहे य तह पुरिसपुंडरीए दत्त नारायण कण्हे । - समवायाङ्ग १२८
(ख) आवश्यक निर्युक्तिभाष्य गाथा ४० ११. (क) जंबुद्दीवे णं दीवे भारहेवासे इमीसे ओसप्पिणीए नवबलदेव नववासुदेव-पियरो होत्या, तं जहा गाहाओपयावई य बंभो, सोमो रुद्दो सिवो महासिवो य । अग्गसिहोय दसरहो नवमो भणिओ य वासुदेवो ॥ जंबुद्दीवे णं दीवे भारहेवासे इमीसे ओसप्पिणीए णव-वासुदेव-मायरो होत्था, तं मियावई उमा चेव पुहवी सीया
जहा- गाहा
अम्मया ।
च्छिमई से समई के कई देवई तहा ||
-समवायांग -१५८
(ख) स्थानांग ६ स्थान, सू० ८८.
(ग) आवश्यक निर्युक्ति गा० ४११, नियुक्ति की गाथा में रुद्र के
बाद सोम का नाम है ।
माता के नाम के लिए आवश्यक नियुक्ति गा० ४०६ देखो
Jain Education International
य
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org