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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण की तरह नहीं जमा पाते । तीर्थङ्कर और अन्य मुक्त आत्माओं में जो यह अन्तर है वह देहधारी अवस्था में ही रहता है। देहमुक्त अवस्था में नहीं। प्रस्तुत अवसर्पिणीकाल में चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं। पहले तीर्थङ्कर ऋषभदेव थे और चौबीसवें तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर । चौबीस तीर्थङ्करों के सम्बन्ध में सब से प्राचीन उल्लेख दृष्टिवाद के मूलप्रथमानुयोग में था, पर आज वह अनुपलब्ध है। आज सबसे प्राचीन उल्लेख समवायाङ्ग, कल्पसूत्र' और आवश्यक नियुक्ति में मिलता है। उसके पश्चात् त्रिषष्टिशलाकापूरुषचरित्र, चउप्पन्नमहापुरिसचरियं, महापुराण-उत्तरपुराण आदि ग्रन्थों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। स्वतंत्र रूप से भो एकएक तीर्थङ्कर पर आचार्यों ने संस्कृत प्राकृत, अपभ्रश और अन्य प्रान्तीय भाषाओं में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। अगले पृष्ठों में उन्हींप्राचीन ग्रन्थों के प्रकाश में बावीसवें तीर्थङ्कर भगवान् अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन प्रस्तुत किया जाएगा। साथ ही भगवान् अरिष्टनेमि के समय में पैदा हुए वासुदेव श्री कृष्ण के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जायेगा। यहाँ हमें अब संक्षेप में यह देखना है कि भारतीय संस्कृति में वासुदेव का क्या स्थान रहा है। जैन दृष्टि में वासुदेव : जैन साहित्य में चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासूदेव, नौ प्रति वासुदेव और नौ बलदेव, इन तिरेसठ व्यक्तियों को श्लाघनीय और उत्तम पुरुष माना है । स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, आवश्यक नियुक्ति आदि में उन सभी के नाम,१° उनके माता पिता के नाम,१ उनकी ७. चउव्वीसं देवाहिदेवा, पण्णत्ता तं जहा उसभ-अजित-संभव-अभिणंदण-सुमइ-पउमप्पह- सुपास-चंदप्पह-सुविधिसीअल--सिज्जंस-वासुपुज्ज-विमल--अणंत--धम्म-संति-कुथु--अर-मल्लीमुणिसुव्वय-नमि-नेमी-पास-वद्धमाणा । -~-समवायांग-२४ ८. कल्पसूत्र ६. आवश्यक नियुक्ति ३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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