________________
३७४
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
में अवन्ती और उत्तर-पश्चिम में मत्स्य व सूरसेन जनपद थे । मध्यप्रदेश का कुछ भाग और बुन्देलखण्ड का कुछ हिस्सा इस जनपद के अन्तर्गत आता है । विभिन्न कालों में इसकी सीमा परिवर्तित होती रही है | चेतीयजातक के अनुसार इस जनपद की राजधानी सोत्थिवती नगरी थी । नन्दलाल देने का कथन है कि सोत्थिवती नगरी ही महाभारत की शुक्तिमती नगरी थी । १४६ पाजिटर इस जनपद को बांदा के समीप बतलाते हैं । १४७ डा० रायचौधरी का भी यही मत है । १४८ बौद्ध साहित्य में चेदि राष्ट्र का विस्तार से निरुपण है और इसके प्रसिद्ध नगरों का भी कथन है । चेदि जनपद से काशी जनपद जाने का एक मार्ग था, वह भयंकर अरण्य में से होकर जाता था और मार्ग में तस्करों का भी भय रहता था । शिशुपाल 'चेदि' जनपद का सम्राट् था । १५० आचार्य जिनसेन ने चेदि राज्य की समृद्धि का वर्णन किया है । १५१ चंदेरी नगरी का समीपस्थ प्रदेश 'चेदि' जनपद कहलाता था । 'शुक्तिमतीया' जैन श्रमणों की एक शाखा भी रही है । १५२
४९
पल्लव :
दक्षिण भारत के कुछ भाग पर पल्लव वंश का शासन पांचवीं शताब्दी से नौवीं शताब्दी तक रहा है । कांची पल्लव वंश की
१४४. वसुदेव हिण्डी पृ० १६५
१४५. भ० पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन पृ० १६३
१४६. ज्योग्रफीकल डिक्शनरी ऑव एन्शियन्ट एण्ड मेडिवल इण्डिया पृष्ठ १६६
१४७. (क) पोलिटिकल हिस्ट्रो ऑव एन्शियन्ट इण्डिया पृ० १२६ (ख) स्टडीज इन इण्डियन एण्टिक्विरीज पृ० ११४ १४८. पोलिटिकल हिस्ट्री ऑव एन्शियन्ट इण्डिया पृ० १२६ १४६. ( क ) बुद्धकालीन भारतीय भूगोल पृ० ४२७ (ख) अंगुत्तरनिकाय ३ जिल्द पृ० ३५५ १५०. शिशुपाल वध महाकाव्य, सर्ग २।१५-१६-१७ १५१. आदिपुराण २९।५५
१५२. कल्पसूत्र सूत्र २०६० २६२, देवेन्द्रमुनि सम्पादित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org