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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
कारों ने तथा वैदिक हरिवंशपुराण,२ विष्णुपुराण और श्रीमद्भागवत आदि में द्वारका को समुद्र के किनारे माना है और कितने ही ग्रन्थकारों ने समुद्र से बारह योजन धरती लेकर द्वारका का निर्माण किया बताया है। सुस्थित देव को श्रीकृष्ण ने कहा-"हे देव ! पूर्व के वासुदेव की द्वारका नामक जो नगरी यहां थी वह तुम ने जल में डुबा दी है, एतदर्थ मेरे निवास के लिए उसी नगरी का स्थान मूझे बताओ। इससे स्पष्ट है कि द्वारका के पास समुद्र था। कृष्ण के पूर्व जो द्वारका थी वह समुद्र में डूबी हुई थी उसी स्थान पर श्रीकृष्ण के लिए द्वारका का निर्माण किया गया था। संभव है द्वारका के एक ओर समुद्र हो और दूसरी ओर रैवतक आदि पर्वत हों। ___ महाभारत में श्रीकृष्ण ने द्वारकागमन के बारे में युधिष्ठिर से कहा-मथुरा को छोड़कर हम कुशस्थली नामक नगरी में आये जो रैवतक पर्वत से उपशोभित थी। वहां दुर्गम दुर्ग का निर्माण किया, अधिक द्वारों वाली होने के कारण द्वारवती अथवा द्वारका कहलाई।८५
चक्र तथैव निश्चित्य सति पुण्ये न कः सखा ॥ १। द्वधा भेदमयाद् वाधि भयादिव हरे रयात् ।।
-उत्तरपुराण ७१।२०-२३, पृ० ३७६ ८२. हरिवंशपुराण २।५४ ८३. विष्णुपुराण ५।२३।१३ ८४. इति संमन्त्र्य भगवान् दुर्ग द्वादश-योजनम्। अन्तः ममुद्र नगरं कृत्स्नाद्भुतमचीकरत् ।।
- श्रीमद्भागवत १०, अ० ५०५० A. ता जह पुव्वि दिन्नं ठाणं नयरीए आइमचउण्हं । तुमए तिविठ्ठपमुहाणं वासुदेवाणं सिंधुतडे ।।
-भव-भावना २५७ ८५. कुशस्थली पुरी रम्यां रैवतेनोपशोभिताम् ।
ततो निवेशं तस्यां च कृतवन्तो वयं नृप ! ॥ ५० । तथैव दुर्ग-संस्कारं देवैरपि दुरासदम् । स्त्रियोऽपि यस्यां युध्येयुः किमु वृष्णि महारथाः ॥ ५१ ।
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