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भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १
वृहत्कल्प के अनुसार द्वारका के चारों ओर पत्थर का प्राकार था । ४ वण्हिदसाओ में भी यही द्वारका का वर्णन मिलता है ।७५
आचार्य हेमचन्द्र ने द्वारका का वर्णन करते हुए लिखा है-वह बारह योजन आयाम वाली और नव योजन विस्तृत थी। वह रत्नमयी थी। उसके आसपास १८ हाथ ऊचा, ह हाथ भूमिगत और १२ हाथ चौड़ा सब ओर से खाई से घिरा हआ किला था। चारों दिशाओं में अनेक प्रासाद और किले थे। राम-कृष्ण के प्रासाद के पास प्रभासा नामक सभा थी। उसके समीप पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान शंल, पश्चिम में सौमनस पर्वत और उत्तर में गंधमादन गिरि थे। __ आचार्य हेमचन्द्र, आचार्य शीलाङ्क,८ देवप्रभसूरि, आचार्य जिनसेन,० आचार्य गुणभद्र आदि श्वेताम्बर व दिगम्बर ग्रन्थ
७४. वृहत्कल्प भाग २, पृ० २५१ ७५. वण्हिदशाओ ७६. शक्राज्ञया वैश्रवणश्चक्रे रत्नमयीं पुरीम् ।
द्वादशयोजनायामं नवयोजनविस्तृताम् ॥३६६। तुगमष्टादशहस्तान्नवहस्तांश्च भूगतम् । विस्तीर्ण द्वादशहस्तांश्चक्रे व सुखातिकम् ॥४००।
-त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग ५, पृ० ६२ ७७. त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग ५, पृ० ६२ ७८. चउप्पन्नमहापुरिस चरियं पृ० ७६. पाण्डव चरित्र ८०. सद्यो द्वारवती चक्रे कुबेरः परमां पुरीम् ।
नगरी द्वादशायामा, नवयोजनविस्तृतिः । वज्रप्राकार-वलया, समुद्र-परिखावृता ॥
-हरिवंशपुराण ४१।१८-१६ ८१. अश्वाकृतिधरं देवं समारुह्य पयोनिधेः ।
गच्छतस्तेऽभवेन्मध्ये, पुरं द्वादशयोजनम् ॥ २० । इत्युक्तो नैगमाख्येन स्वरेण मधुसूदनः ।
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