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भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १
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महाभारत जन पर्व की टीका में नीलकंठ ने कुशावर्त का अर्थ द्वारका किया है ।६
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ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास में प्रभुदयाल मित्तल ने लिखा है - शूरसेन जनपद से यादवों के आ जाने के कारण द्वारका के उस छोटे से राज्य की बड़ी उन्नति हुई थी । वहां पर दुर्भेद्य दुर्ग और विशाल नगर का निर्माण कराया गया और उसे अंधक - वृष्णि संघ के एक शक्तिशाली यादव राज्य के रूप में संगठित किया गया। भारत के समुद्री तट का वह सुदृढ़ राज्य विदेशी अनार्यों के आक्रमण के लिए देश का एक सजग प्रहरी भी बन गया था । गुजराती भाषा में 'द्वार' का अर्थ बंदरगाह है । इस प्रकार द्वारका या द्वारवती का अर्थ हुआ 'बंदरगाहों की नगरी ।' उन बंदरगाहों से यादवों ने सुदूर - समुद्र की यात्रा कर विपुल सम्पत्ति अर्जित की थी।'''' हरिवंश २-५८-६७) में लिखा है - द्वारिका में निर्धन, भाग्यहीन, निर्बल तन और मलिन मन का कोई भी व्यक्ति नहीं था ।"
श्वेताम्बर तेरापंथी जैन समाज के विद्वान् मुनि रूपचन्द्रजी ने 'जैन साहित्य में द्वारका" शीर्षक नामक लेख में लिखा है - ' घट जातक के उल्लेख को छोड़कर आगम साहित्य तथा महाभारत में द्वारका का रैवतक पर्वत के सन्निकट होने का अवश्य उल्लेख है, किन्तु समुद्र का बिल्कुल नहीं। यदि वह समुद्र के किनारे होती तो उसके उल्लेख न होने का हम कोई भी कारण नहीं मान सकते । घट जातक के अपर्याप्त उल्लेख को हम इन महत्वपूर्ण और स्पष्ट प्रमाणों के सामने अधिक महत्व नहीं दे सकते । दूसरे में द्वारका के
......मथुरां संपरित्यज्य गता द्वारवती पुरीम् ॥। ६७ ।
- महाभारत सभापर्व, अ० १४
८६. (क) महाभारत जन पर्व अ० १६० श्लोक ५० (ख) अतीत का अनावरण, पृ० १६३
८७. द्वितीय खण्ड ब्रज का इतिहास पृ० ४७
८८. हरिवंशपुराण २।५८।६५
८६. जैन दर्शन और संस्कृति परिषद् शोधपत्र, द्वितीय अधिवेशन सन्
१६६६, पृ० २१४
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