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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण सौराष्ट्र का उल्लेख किया है । तथा देवलस्मृति में तथा जातककथा में भी सौराष्ट्र का वर्णन है।३८
महाक्षत्रप रुद्रदामा के १३० ई० सन् और १५० के बीच उत्कीर्ण जूनागढ़ के पर्वतीय लेख में सौराष्ट्र का उल्लेख है।३१
ई० सन् १५० एवं ई० सन् १६१ के मध्य में टोलेमी नामक परदेशी प्रवासी ने लिखा है रुद्रदामन के महाराज्य में सौराष्ट्र का अधिकारी पहल्लव सुविख्यात था।४०
अरीयन नामक विदेशी लेखक ई० सन् पूर्व तृतीय सदी में लिखता है कि सौराष्ट्र में जनतंत्र था। ई० सन पूर्व १४८ में मीनाण्डर ने भारत में जो राज्य जीत लिये उनमें साराओस्टोस-वा सौराष्ट्र भी था ।४१
सौराष्ट्र की गणना महाराष्ट्र आंध्र, कूड़क्क के साथ की गई है। जहाँ सम्प्रति ने अपने अनुचरों को भेजकर जैन धर्म का प्रचार किया था। कालकाचार्य पारसकूल (ईरान) से ६६ शाहों को लेकर आये थे, इसलिए इस देश को ६६ मंडलों में विभक्त कर दिया गया है।४४ सुराष्ट्र व्यापार का बड़ा केन्द्र था, व्यापारी दूर-दूर से यहां पर आया करते थे ।४५ रैवतक :
पाजिटर रैवतक की पहचान काठियावाड के पश्चिम भाग में वरदा की पहाड़ी से करते हैं ।४६ ज्ञातासूत्र के अनुसार द्वारिका के
३७. सिन्धु सौवीर सौराष्ट्र ३८. बाबेरु जातक में सौराष्ट्र के जलयात्री बेबीलोन गये थे, वहां उनसे
पूछा-कहां से आ रहे हो ? उन्होंने उत्तर में कहा- 'जहां से सूर्य
उदय होता है उस सौराष्ट्र से आ रहे हैं।' ३६. सौराष्ट्र नो इतिहास-ले० शंभुप्रसाद हरप्रसाद देसाई पृ० २,
प्र० सोरठ शिक्षण अने संस्कृति संघ, जूनागढ ४०. टोलेमी-अन्श्यन्ट इण्डिया अज डीस्क्राईब्ड बाई टोलेमी मेकेक्रिन्डल ४१. अरीयन-चिनोक आवृत्ति ४२. दरबार श्री अनकचन्द्र भायावालानो लेख ४३. वृहत्कल्प भाष्य ११३२८९
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