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भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १
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उत्तर-पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था । ४" अन्तकृत्दशा में भी यही वर्णन है ।४८ त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र के अनुसार द्वारिका के समीप पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान शैल, पश्चिम में सौमनस पर्वत और उत्तर में गंधमादन गिरि हैं । ४९ महाभारत की दृष्टि से रैवतक कुशस्थली के सन्निकट था । ५० वैदिक हरिवंशपुराण के अनुसार यादव मथुरा छोड़कर सिन्धु में गये और समुद्र किनारे रैवतक पर्वत से न अतिदूर और न अधिक निकट द्वारका बसाई | 22 आगम साहित्य में रैवतक पर्वत का सर्वथा स्वाभाविक वर्णन मिलता है । ५२
भगवान् अरिष्टनेमि अभिनिष्क्रमण के लिए निकले, वे देव और मनुष्यों से परिवृत शिविका - रत्न में आरूढ़ हुए और रैवतक पर्वत पर अवस्थित हुए । ५३ राजीमती भी संयम लेकर द्वारिका से रैवतक पर्वत पर जा रही थी । बीच में वह वर्षा से भीग गई और कपड़े सुखाने के लिए वहीं एक गुफा में ठहरी, ५४ जिसकी पहचान आज भी
४४. वहीं० १।९४३
४५. दशवैकालिक चूर्णि पृ० ४०
४६. हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र जिल्द ४, पृ० ७६४-६५
४७. ज्ञाताधर्म कथा १५, सू० ५८
४८. अन्तकृतदशांग
४६. तस्याः पुरो रैवतकोऽपाच्यामासीत्त, माल्यवान् । सौमनसोऽद्रिः प्रतीच्या मुदीच्यां गंधमादनः ॥
- त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग ५ श्लोक ४१ -
५०. कुशस्थलीं पुरीं रम्यां रेवतेनोपशोभिताम् ।
- महाभारत सभापर्व, अ० १४, श्लोक ५०
५१. हरिवंशपुराण २।५५
५२. ज्ञाताधर्म कथा १५, सूत्र ५८
५३. देव- मणुस्स - परिवुडो, सीयारयणं तओ समारूढो । निक्खमिय बारगाओ, रेवयम्मि ट्ठिओ
भगवं ॥
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- उत्तराध्ययन २२।२२
५४. गिरि रेवययं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयणस्स साठिया ||
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