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भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १
३५५ वत्स, कुरु, पंचाल मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवन्ती, गंधार, और कम्बोज इन सोलह जनपदों के नाम मिलते हैं ।२८ सौराष्ट्र :
जैन साहित्य में साढ़े पच्चीस आर्य देशों का वर्णन है। उनमें सौराष्ट्र का भी नाम है ।२९ ।।
सौराष्ट्र के नामकरण के सम्बन्ध में विद्वानों में विभिन्न मत भेद हैं। किसी ने सूर्यराष्ट्र, किसी ने सुराष्ट्र, किसी ने सौराष्ट्र और किसी ने सुरराष्ट्र कहा है । एक मान्यता के अनुसार सुरा नामक जाति के निवास के कारण यह प्रदेश: सुराराष्ट्र-सौराष्ट्र कहलाता है। पर प्राचीन ग्रन्थों में उसका शुद्ध व स्पष्ट नाम सौराष्ट्र है ।
रामायण, महाभारत और जैनग्रन्थों में सौराष्ट्र का उल्लेख है ।33 ईस्वी पूर्व छट्ठी शताब्दी में हुए आचार्य पाणिनीय ने३४ व सूत्रकार बौद्धायन ने,3५ चौथी सदी में हुए कौटिल्य ने३६
२८. अंगुत्तरनिकाय, पालिटैक्स्ट सोसायटी संस्करण : जिल्द १,
पृ० २१३, जिल्द ४, पृ० २५२ २६. (क) बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति ११३२६३
(ख) प्रज्ञापना ११६६, पृ० १७३
(ग) प्रवचन सारोद्धार पृ० ४४६ ३०. (क) दरबार अनकचन्द्र भायावालानो लेख
(ख सौराष्ट्र नो इतिहास, ले० शंभुप्रसाद हरप्रसाद देसाई, पृ० १ ३५. “सौराष्ट्रन्सह बालहीकान् भद्राभीहांस्तथैव च"
...--रामायण किष्किधा काण्ड ४२।६ ३२. महाभारत ३३. वृहत्कल्प, भाग ३, पृ० ६१२-६१४ ३४. सौराष्ट्री का नारी, 'कुन्ति सुराष्ट्रा', चिन्तिसुराष्ट्रा ।
-कार्तकोजनपदादयश्च-का गणपाठ ६।३।३७ ३५. बौद्धायन सूत्र १-१-२६ ऋग्वेद में (१०।६१८) दक्षिणापथ का
उल्लेख है । उस समय आर्य दक्षिण तक पहुंचे थे, एतदर्थ सौराष्ट्र
को दक्षिण में गिना है। ३६. कोटिल्य अर्थशास्त्र
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