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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
दूसरे दिन श्रीकृष्ण ने द्वारिका में घोषणा करवायी कि द्वारिका का विनाश होने वाला है, अतः द्वारिका निवासी अधिक से अधिक धार्मिक कार्य में रत रहें ।१० भगवान् की भविष्यवाणी :
कुछ दिनों के पश्चात् भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका के रैवताचल पर समवसत हुए। श्रीकृष्ण भगवान को वन्दन के लिए गए। भगवान् का उपदेश सुनकर अनेकों व्यक्तियों ने दीक्षा ग्रहण की। श्रीकृष्ण ने प्रभु से पूछा-भगवन् ! द्वारिका का विनाश कब होगा?
प्रभु ने फरमाया-द्वैपायन ऋषि आज से बारहवें वर्ष द्वारिका का दहन करेगा।११
द्वैपायन मृत्यु प्राप्त कर अग्निकुमार देव हुआ । पूर्व वैर को स्मरण कर वह शीघ्र ही द्वारिका में आया, किन्तु द्वारिका निवासी आयंबिल, उपवास, बेले, तेले आदि तप की आराधना करते थे । तप व धार्मिक क्रिया के प्रभाव से वह देव कुछ भी विघ्न उपस्थित नहीं कर सका। जब बारहवां वर्ष आया तब भावी की प्रबलता से द्वारिकावासियों ने सोचा अपनी तप-जप की साधना से द्व पायन भ्रष्ट होकर चला गया है। हम सभी सकुशल जीवित रह गये हैं अतः अब हमें स्वेच्छा से आनन्दपूर्वक क्रीडा करनी चाहिए, ऐसा विचार कर वे मद्यपान तथा मांसाहार आदि करने लगे । १२
६. त्रिषष्टि० ८ १११३६ से ४१ १०. अघोषयद्वितीयेऽह्नि नगर्यामिति शाङ्ग भृत् । विशेषाद्धर्मनिरतास्तिष्ठतात: परं जनाः ॥
-त्रिषष्टि० ८।१।४२ ११. आचख्यौ कृष्णपृष्ट श्च सर्वज्ञो भगवानिदम् । द्वैपायनो द्वादशेऽब्दे धक्ष्यति द्वारिकामिमाम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।१११४७ १२. (क) रन्तु प्रवृत्तास्ते स्वैरं मधपा मांसखादिनः । लेभेऽवकाश छिद्रज्ञस्तदा द्वैपायनोऽपि हि ।।
-त्रिषष्टि० ८।११।६१
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