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जीवन की सांध्य-वेला
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____ अनुचर ने वह स्थान बताया। दूसरे दिन शाम्बकुमार यादव कुमारों के साथ कादम्बरी गुफा के पास आया। सभी ने प्रसन्नता से खूब मदिरा का पान किया। इधर उधर घूमते हुए उन्होंने उसी पर्वत पर ध्यान-मुद्रा में अवस्थित द्वौपायन ऋषि को देखा । ऋषि को देखते ही वह कहने लगे--यही वह ऋषि है जो द्वारिका का विनाश करेगा । यदि इसे ही मार दिया जाय तो द्वारिका का नाश नहीं होगा। ऐसा सोचकर सभी यादवकुमार उस पर टूट पड़े, ढेले पत्थर व लकड़ियों से तथा मुष्ठियों से उस पर प्रहार करने लगे। द्वैपायन ऋषि भूमि पर गिर पड़ा। यादवकुमार मरा हुआ जानकर द्वारिका लौट आये। कृष्ण की उद्घोषणा :
श्रीकृष्ण को जब यह बात ज्ञात हई तो उन्हें अत्यधिक पश्चात्ताप हुआ । कहा- इन कुमारों ने तो कुल संहार का कार्य कर दिया ! बलराम को साथ लेकर श्रीकृष्ण द्वैपायन ऋषि के पास गये। अत्यन्त अनुनय विनय के साथ निवेदन किया-ऋषिवर ! अज्ञानी बालकों ने मदिरा के नशे में बेभान होकर आपका घोर अपराध किया है, उसे क्षमा करो। आपके जैसे विशिष्ट ज्ञानी और तपस्वियों को क्रोध करना उचित नहीं है।
द्वैपायन ने कहा-कृष्ण ! जब तुम्हारे पुत्रों ने मुझे मारा उसी समय मैंने यह निदान किया कि 'सम्पूर्ण द्वारिका को जलाऊंगा' पर तुम्हारी नम्र प्रार्थना पर प्रसन्न होकर तुम्हें छोड़ दूगा । श्रीकृष्ण सशोक द्वारिका आये । जन-जन की जिह्वा पर द्वपायन के निदान की वार्ता फैल गई।
७. (क) त्रिषष्टि० ८।११।२३-३० (ख) हरिवंश पुराण के अनुसार द्वैपायन भ्रान्तिवश बारहवें वर्ष
में ही वहां आ गया था, और उनको यादव कुमारों ने मारा,
और मरने के पश्चात् देव बनकर उसने उपद्रव किया। त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र के अनुसार द्वैपायन को मारा, फिर वह मरकर देव बना किन्तु बारह वर्ष तक तप की
साधना चलने से वह कुछ भी उपद्रव नहीं कर सका। ८, त्रिषष्टि० ८।११।३० से ३५
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