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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
भगवान् की यह भविष्यवाणी सुनकर यादवगण विचारने लगे कि जराकुमार वस्तुतः कुलाङ्गार है । यादवों को अपनी ओर देखने पर जराकूमार सोचने लगा-मैं वसुदेव का पुत्र हैं, क्या मैं अपने भाई की हत्या करूगा ? नहीं, भगवान् की भविष्यवाणी को मिथ्या करने के लिए उसी समय वह भगवान् को नमस्कार कर धनुष बाण लेकर चल दिया और जंगल में जाकर रहने लगा। द्व पायन ऋषि को मारना :
द्वैपायन ऋषि ने भी जनश्रुति से भगवान् की भविष्यवाणी सनी । यादवों की और द्वारिका की रक्षा के लिए वह भी एकान्त जंगल में चला गया।
श्रीकृष्ण यादवों सहित द्वारिका में आये। मदिरा के कारण भयंकर अनर्थ होगा, यह सोचकर उन्होंने मदिरापान का पूर्ण निषेध कर दिया। श्रीकृष्ण के आदेश से पूर्व तैयार की हुई मदिरा कदम्बवन के मध्य में कादम्बरी नामक गुफा के पास अनेक शिलाकुण्डों में डाल दी गई।
जिन शिला कुण्डों में मदिरा डाली गई थी, वहां पर नाना प्रकार के वृक्ष थे, उनके सुगन्धित पुष्पों के कारण वह मदिरा पहले से भी अधिक स्वादिष्ट हो गई। एक समय वैशाख महीने में शाम्ब कुमार का एक अनुचर घूमता हुआ वहां पहुंच गया। उसे तीव्र प्यास लगी हुई थी। उसने एक कुण्ड में से मदिरा पी, वह उसे बहुत ही स्वादिष्ट लगी। वह एक वर्तन में उस मदिरा का लेकर शाम्बकुमार के पास गया। शाम्बकुमार उस मदिरा को पीकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ, उसने धीरे से अनुचर से पूछा-यह सर्वोत्तम मदिरा तुम्हें कहां पर प्राप्त
हुई ?६
३. (क) त्रिषष्टि० ८।१११७ से १.
(ख) हरिवंशपुराण ६११३० से ३२ ४. द्वैपायनोऽपि तच्छु त्वा लोकश्रुत्या प्रभोर्वचः । ___ द्वारकाया यदूनां च रक्षार्थं वनवास्यभूत् ॥ ५. त्रिषष्टि० ८।११।१२-१३ ६. (क) त्रिषष्टि० ८।११।१६-२२
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