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जीवन के विविध प्रसंग
३२१ ६ / श्रीकृष्ण और पिशाच :
एक समय श्रीकृष्ण, बलदेव, सत्यकि और दारुक, ये चारों मिलकर वन-विहार को गये । भयंकर अरण्य में ही सूर्य अस्त हो जाने से चारों एक वट वृक्ष के नीचे ठहर गए। चारों ने विचार किया-यह विकट वन है। हम सभी थके हुए हैं अतः नींद सभी को गहरी आयेगी। पर किसी प्रकार का उपद्रव न हो, एतदर्थ एक-एक प्रहर तक प्रत्येक व्यक्ति जागता रहे। सभी ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
दारुक ने निवेदन किया-प्रथम प्रहर मेरा है। आप सभी आनन्द से सो जाइए, मैं पहरा दूंगा । दारुक पहरे पर खड़ा हो गया। कृष्ण आदि सो गए। इतने में एक पिशाच आया। उसने कहा-दारुक ! मैं भूखा हूँ, बहुत दिनों से भोजन नहीं मिला है । तुम्हारे साथी जो सोये हुए हैं मैं इन्हें खाना चाहता हूँ। ____ दारुक ने गर्जते हुए कहा-अरे पिशाच ! मेरे रहते मेरे साथियों को खाना कथमपि संभव नहीं है । तुझ में शक्ति है तो युद्ध के लिए तैयार हो जा। उसने दारुक के चेलेंज को स्वीकार किया। दोनों में युद्ध होने लगा। दारुक का ज्यों-ज्यों क्रोध बढ़ता गया त्यों-त्यों पिशाच का बल भी बढ़ता गया। दारुक थक गया पर पिशाच को जीत न सका।
द्वितीय प्रहर में सत्यकि उठा। वह भी दारुक की तरह उससे लड़ता रहा । अपने साथियों की प्राण-रक्षा के लिए जी-जान से प्रयत्न करता रहा । पर पिशाच को परास्त न कर सका।
तृतीय प्रहर में बलदेव की भी यही स्थिति रही।
चतुर्थ प्रहर हुआ । कृष्ण उठे । पहरे पर एक वीर सैनिक की तरह खड़े हो गये । इतने में सामने पिशाच दिखलाई दिया। कृष्ण ने पूछा-तुम कौन हो और यहां क्यों आये हो?
पिशाच ने कहा-मैं तुम्हारे साथियों को खाने के लिए आया हूँ, कई दिनों से भूखा हूँ, आज भाग्य से बहुत बढ़िया भोजन मिल गया है।
श्रीकृष्ण ने उसे ललकारते हुए कहा-मेरे जीते-जी तुम्हारी इच्छा पूर्ण न होगी। श्रीकृष्ण बड़े दक्ष थे । वे मानव और पिशाच
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