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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
के बल को अच्छी तरह जानते थे । पिशाच युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा | श्रीकृष्ण शान्त भाव से खड़े रहे । उन्होंने कहा - तू पहलवान है, बहादुर है, गजब का योद्धा है । इस प्रकार कहकर श्रीकृष्ण मुस्कराते रहे । उनकी मधुर मुस्कान से पिशाच की शक्ति क्षीरण
ही थी । वह देखते ही देखते भूमि पर लुढक पड़ा । उसने कहा-कृष्ण, मैं तुम्हारा दास हूँ ।
उषा की सुनहरी किरणें मुस्कराई । दारुक सत्यक, और बलदेव तीनों उठे, पर तीनों का शरीर लहूलुहान था । सबके सब घायल से थे । श्रीकृष्ण ने पूछा - साथियो, क्या बात है ? यह अवस्था कैसे ? तीनों ने एक स्वर से कहा— बात क्या है ? रात्रि में पिशाच से डटकर युद्ध किया । यदि युद्ध न करते तो बच नहीं सकते थे ।
श्रीकृष्ण ने हंसते हुए कहा- साथियों ! युद्ध तो मैंने भी किया था, पर मैं घायल नहीं हुआ, पिशाच घायल हो गया । देखो न, वह भूमि पर रेंग रहा है। तुमने पिशाच से युद्ध किया, पर तुम्हें युद्ध की कला का ज्ञान नहीं था । वह उछल-कूद मचाता रहा, और मैं शान्त भाव से खड़ा रहा, उसकी प्रशंसा करता रहा । क्षमा एक ऐसा अचूक शस्त्र है जिससे शत्रु की शक्ति नष्ट हो जाती है । मैंने इसी अमोघ शस्त्र का प्रयोग किया । "
७ | शिशुपाल वध
गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण में शिशुपाल वध की कथा इस प्रकार है
कौशल के राजा भेषज थे। उनकी पत्नी का नाम मद्री था । उनके तीन नेत्र वाला शिशुपाल पुत्र हुआ । तीन नेत्रों को निहार कर उन्होंने किसी निमित्तज्ञानी से पूछा । निमित्तवेत्ता ने कहा जिसे देखने से इसका तीसरा नेत्र नष्ट हो जायेगा, यह उसी के द्वारा
५. उत्तराध्ययन अध्ययन २, गा० ३१ की टीका
६. रुग्मिण्यथ पुरः कौसलाख्यया भूपतेः सुतः । भेषजस्याभवन्मद्रयां शिशुपालस्त्रिलोचनः ॥
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— उत्तरपुराण ७१।२४२, पृ० ३६८
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