________________
जीवन के विविध प्रसंग
३१६ ली गई । पाण्डव परीक्षा में उत्तीर्ण हो गए। अब नम्बर द्रौपदी का था।
श्रीकृष्ण ने कहा-द्रौपदी ! तुम तो सती हो, जरा मुह से बोलो पाँच पाण्डवों के अतिरिक्त किसी भी परपुरुष की इच्छा मन में न की हो तो, अय आम्रफल ! पुनः वृक्ष पर लग जाओ।
द्रौपदी ने कहा- पर आम का फल वृक्ष पर लगने के बजाय, पृथ्वी पर गिर पड़ा। सभी आश्चर्य चकित हो गए।
द्रौपदी के आँखों से आँसू बहने लगे। कृष्ण ने कहा- द्रौपदी ! घबराओं मत ! स्मरण करो उस दिन नदी के प्रसंग को। कर्ण को देखकर तुम्हारे मन में क्या विचार हुए थे। तुम्हारे मन में मलिनता आयी थी न ?
द्रौपदी ने उस क्षणिक विचार के लिए पश्चात्ताप किया। इसके अतिरिक्त यदि मेरे मन में कभी भी मलिन विचार न आये हों तो फल वृक्ष के लग जा। फल यह कहते ही वृक्ष के लग गया। कृष्ण ने आलोचना करवा कर द्रौपदी के जीवन को शुद्ध कर दिया।
५ | आत्मा की शुद्धि :
वैदिक ग्रन्थों में एक प्रसंग है कि एक बार युधिष्ठिर अपने चारों भाइयों सहित श्रीकृष्ण के पास आये । श्रीकृष्ण ने उनके आने का कारण पूछा। ___युधिष्ठिर बड़े व्यथित थे, उन्होंने कहा-नटवर ! युद्ध में लाखों व्यक्तियों का संहार हुआ है, एतदर्थ मेरा मन बड़ा दुःखी है, हम चाहते हैं कि कुछ दिन तीर्थ स्थानों में जाए और अपने जीवन को पाप से मुक्त करें।
श्रीकृष्ण सोचने लगे कि युधिष्ठिर जैसे धर्मात्मा व्यक्ति भी शान्ति प्राप्त करने के लिए बाहर भटकना चाहते हैं । उस समय उन्होंने
३. जवाहर किरणावली उदाहरण माला
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org