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महाभारत का युद्ध
३०६ महाभारत के अनुसार जरासंध का युद्ध कौरव-पाण्डवों के युद्ध से पहले हुआ था ।५५
हमारी अपनी दृष्टि से भी महाभारत और जरासंध का युद्ध पृथक् पृथक् है। महाभारत युद्ध और उसका दुष्परिणाम :
पाण्डवों को अपने स्वत्व की रक्षा और न्यायोचित अधिकार की प्राप्ति के लिए युद्ध के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रहा। युद्ध की घोषणा हुई। एक पारिवारिक राजवंश का झगड़ा, व्यापक बन गया कि उसने देशव्यापी महायुद्ध का रूप धारण कर लिया।
महाभारत का यह भयंकर संग्राम वैदिक परम्परा की दृष्टि से १८ दिनों तक चला, किन्तु उस युग की समुन्नत युद्ध कला और अत्यन्त परिष्कृत अस्त्र-शस्त्रों के कारण उस अल्पकाल में ही इतना भीषण संहार हुआ कि उसकी तुलना करना कठिन है। दोनों पक्षों के बहुसंख्यक राजा गण अपनी-अपनी विराट् सेना के साथ उस महा विनाश की बलि वेदी पर जझ मरे थे। श्रीकृष्ण के अपूर्व बुद्धि बल और अद्भुत रण-कौशल से शक्तिशाली कौरव पराजित हए और पाण्डवों की विजय हुई। पर यह विजय बहुत मंहगी रही। उस युद्ध का भयानक परिणाम समस्त भारतवर्ष को भोगना पड़ा। उस काल तक देश ने ज्ञान-विज्ञान की जो उन्नति की थी और जो अभूतपूर्व भौतिक समृद्धि प्राप्त की थी वह सब उस महायुद्ध की भीषण ज्वाला में जलकर भस्म हो गई। उस समय देश अवनति के ऐसे गहरे गर्त में गिर गया कि जिसका चिरकाल तक उद्धार नहीं हो सका ।१६ गीता का उपदेश :
उस युद्ध का विस्तृत वर्णन महाभारत, पाण्डवचरित्र, आदि ग्रन्थों में किया गया है । उस युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने। महान् योद्धा और वीर भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, अभिमन्यु,
५५. देखिए-महाभारत सभापर्व के अन्तर्गत जरासंध पर्व ५६. देखिए ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास
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