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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण दुर्योधन, और दुःशासन आदि अनेक वीरों का उस युद्ध में संहार हुआ।
वैदिक मान्यता के अनुसार उस युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। गीता वैदिक परम्परा का एक अद्भुत ग्रन्थ है। सन्त ज्ञानेश्वर ने कहा है- गीता विवेक रूपी वृक्षों का अपूर्व बगीचा है। वह नवरस रूपी अमृत से भरा समुद्र है। लोकमान्य तिलक ने लिखा-गीता हमारे धर्मग्रन्थों में एक अत्यन्त तेजस्वी
और निर्मल हीरा है । महर्षि द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर का अभिमत है किगीता वह तैलजन्य दीपक है जो अनन्तकाल तक हमारे ज्ञानमन्दिर को प्रकाशित करता रहेगा। बंकिमचन्द्र का मानना है कि---गीता को धर्म का सर्वोत्तम ग्रन्थ मानने का यही कारण है कि उसमें ज्ञान, कर्म, और भक्ति-तीनों योगों की न्याययुक्त व्याख्या है। महा . गांधी गीता को माता व सद्गुरु रूप में मानते थे।
जैन ग्रंथों में कुरुक्षेत्र में गीतोपदेश की कोई चर्चा नहीं मिलती : कुछ समीक्षकों का मत है कि गीता का उपदेश वास्तव में कुरुक्षेत्र में यद्ध के समय का उपदेश नहीं है, किन्तु युद्ध का रूपक बनाकर वह भारतीय जीवन दृष्टि का एक महत्वपूर्ण विश्लेषण किया गया है !
कुछ भी हो, गीता भारतीय चिंतन एवं जीवन दर्शन की एक अमूल्य मणि है, इस में कोई दो मत नहीं हो सकते ।
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