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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण में तथा अन्य कितने ही जैन ग्रन्थों में भी महाभारत के युद्ध का वर्णन नहीं है। कितने ही लेखकों ने जरासंध के साथ हुए युद्ध एवं महाभारत युद्ध को एक मानकर ही वर्णन कर दिया है।
देवप्रभसूरि के पाण्डव चरित्र के अनुसार कौरवों और पाण्डवों का युद्ध जरासंध के युद्ध से पूर्व हुआ था। कौरव-पाण्डव-युद्ध में जरासंध दुर्योधन के पक्ष में आया था, किन्तु उसने लड़ाई में भाग नहीं लिया था। कौरव-पाण्डवों का युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था,४९ और जरासंध के साथ कृष्ण का युद्ध द्वारिका से पैंतालीस योजन दूर सेनपल्ली में हुआ था ।५° वे दोनों युद्ध पृथक्-पृथक् थे ।
दिगम्बर आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपूराण में५१ तथा दिगम्बर आचार्य शुभचन्द्र ने पाण्डवपुराण में५२ जरासंध के यद्ध को और कौरव-पाण्डवों के युद्ध को एक माना है। जरासंध का वह युद्ध कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ बताया गया है ।५३ उसी युद्ध में श्रीकृष्ण जरासंध को मारते हैं। ५४
४६. पाण्डव चरित्र सर्ग १३, पृ० ३६१ ५०. (क) पंचचत्वारिंशतं तु योजनानि निजात् पुरात् । गत्वा तस्थौ सेनपल्या ग्रामे संग्रामकोविदः: ।।
-त्रिषष्टि० ८।७।१६६ (ख) कइवयपयाणएहिं च पत्तो सरस्सतीए तीराए सिणवल्लिया
हिहाणं गाभंति । तत्थ य समथलसमरजोग्गभूमिभागम्मि आवासिओ समुद्दविजओ त्ति ।
-चउप्पन्नमहापुरिसचरियं पृ० १८६ ५१. हरिवंशपुराण सर्ग ५०, पृ० ५८७ ५१. देखिए पर्व १६-२०, पृ० ३६०-४४५ ५३. जरासन्धोऽत्र संप्राप्तः सैन्यसोगररुद्धदिक् ।
कुरुक्षेत्रं महाक्षत्रप्रधानप्रधनोचितम् ॥ पूर्वमभ्येत्य तत्रैव केशवोऽपरसागरः । तस्थावापूर्यमाणः सत् वाहिनीनिवर्हनिजैः ।।
-हरिवंशपुराण ५०।६५-६६, पृ० ५८७ ५४. हरिवंशपुराण ५२।८३-८४, पृ० ६०२
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