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महाभारत का युद्ध अपनी करुण-कहानी सुनाती है । अपने बिखरे हुए केशों को हाथ में लेकर आँखों से अश्रु बहाती हुई कहती है—हे कृष्ण ! शत्र जब सन्धि की इच्छा प्रकट करे तब तुम कर्तव्य निश्चित करते समय दुःशासन के हाथों से खींचे गये मेरे इन बालों का स्मरण रखना ।२०
सभी को सान्त्वना देकर श्रीकृष्ण हस्तिनापुर के लिए प्रस्थित हुए। धृतराष्ट्र आदि ने कृष्ण के आगमन का संवाद सुना तो उनके मन में विचार हुआ कि कृष्ण का भव्य स्वागत किया जाय। पर दुर्योधन के मन में और ही विचार चक्कर लगा रहे थे। उसने कहा-मैंने इस समय बहुत बड़ा काम विचारा है। पाण्डवों के सबसे बड़े सहायक श्री कृष्ण हैं। वे जब यहां आए गे तब उन्हें पकड़कर कैद कर लूंगा। फिर पाण्डव यादव और सम्पूर्ण पृथ्वी मण्डल के राजा सहज ही मेरे अधीन हो जायेंगे।२१ - श्री कृष्ण को कैद करने की बात सुनकर दुर्योधन की दुर्बुद्धि पर भीष्मपितामह को बहुत ही क्रोध आया और वे वहां से उठकर चल दिये ।२२ दूषित अन्न नहीं खाऊंगा :
श्रीकष्ण हस्तिनापूर पहँचे। कौरवों ने उनका स्वागत किया पर उस स्वागत में अन्तर का प्रेम नहीं था, यह बात श्री कृष्ण से
१६. देखिए महाभारत-उद्योगपर्व ७२ से १२ तक।
किन्तु जैन पाण्डवचरित्र देवप्रभसूरि में ऐसा वर्णन नहीं है । २०. पद्माक्षी पुढरीकाक्षमुपेत्य गजगामिनी ।
अश्रुपूर्णेक्षणा कृष्णा कृष्णं वचनमब्रवीत् ।। अयं ते पुंडरीकाक्ष दुःशासनकरोद्धृतः । स्मर्तव्यः सर्वकार्येषु परेषां संधिमिच्छता ।।
-महाभारत उद्योगपर्व अ० ८२, श्लोक ३५-३६ २१. इदं तु सुमहत्कार्यं शृणु मे यत्समर्थितम् ।
परायण पाण्डवानां नियच्छामि जनार्दनम् ।। तस्मिन्बद्ध भविष्यन्ति वृष्णय:पृथिवी तथा । पाण्डवाश्च विधेया मे स च प्रातरिहैष्यति ॥
-महाभारत, उद्योगपर्व, अ० ८८, श्लोक १३-१४
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