________________
३०२
भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण सत्यप्रतिज्ञ कर्ण की बात सुनकर श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न हुए। उसके पश्चात् वे पाण्डुराजा से मिले और सीधे द्वारिका चले आये। हस्तिनापुर में दुर्योधन आदि से जो बातें हुई थीं, वह विस्तार से पाण्डवों को कहीं। पाण्डव बहुत ही प्रसन्न हुए और युद्ध की तैयारी करने लगे। दुर्योधन की दुर्बुद्धि :
महाभारत के अनुसार श्रीकृष्ण सन्धि के लिए हस्तिनापुर जाने से पूर्व पाण्डवों से विचार विमर्श करते हैं । १९ द्रौपदी भी कृष्ण को
कर्ण कहता है कि इस समय मैं नहीं मिल सकता । आपका मेरे पास आना, और अनुरोध करना वृथा न होगा । मैं संग्नाम में एक अर्जुन को छोड़कर आपके अन्य चार पुत्रों-युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव का वध नहीं करूंगा । मैं प्रतिज्ञा ग्रहण करता हूँ कि संग्राम में युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को मारने का अवसर पाकर भी उन्हें छोड़ दूंगा । मैं युधिष्ठिर की सेना में एक अर्जुन से ही मरने-मारने वाला संग्राम करूंगा। अर्जुन को मार लेने में ही मैं अपने को कृतार्थ समझूगा । अथवा अर्जुन यदि मुझे मार सके तो मुझे अपार यश और स्वर्ग प्राप्त होगा। हे यशस्विनी ! आपके पांच पुत्र कभी नष्ट न होंगे। मैंने अर्जुन को मारा तो भी और अर्जुन ने मुझे मारा तो भी पांच पाण्डव रहेंगे ही। देखिए व्यास के शब्दों मेंन च तेऽयं समारम्भो मयि मोघो भविष्यति । वध्यान्विषह्यान्संग्रामे न हनिष्यामि ते सुतात् ॥ युधिष्ठिरं न भीमं च यमौ चैवाऽर्जुनादृते । अर्जुनेन समं युद्धमपि यौधिष्ठिरे बले ॥ अर्जुनं हि निहत्याऽऽजौ सम्प्राप्तं स्यात्फलं मया। यशसा चापि युज्येयं निहतः सव्यसाचिना ॥ न ते जातु न शिष्यन्ति पुत्राः पञ्च यशस्विनि। निरर्जुनाः सकर्णा वा सार्जुना वा हते मयि ॥
महाभारत-उद्योग० अ० १४६ - श्लोक २० से २३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org