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महाभारत का युद्ध
सूर्य के प्रकाश में कांच भी हीरे की तरह चमक उठता है वैसे ही सज्जन के सहवास से जीवन चमक उठता है ।
पूर्व दिशा के पवन के साथ मित्रता करने पर बादल अभिवृद्धि को प्राप्त होते हैं और दक्षिण दिशा के पवन के साथ मित्रता करने पर नष्ट हो जाते हैं। वैसे ही सज्जन और दुर्जन की संगति है। यधिष्ठिर के साथ मित्रता करने पर तेरे यश की अभिवृद्धि होगी, पर दुर्योधन का साथ करने पर तेरा गौरव मिट्टी में मिल जायेगा।
कृष्ण ने कर्ण को जरा अपने निकट खींचते हुए कहा-कर्ण ! मैं तुम्हें एक अत्यन्त गोपनीय बात बताता हूं, जो मुझे स्वयं कुन्ती ने कही है । वास्तव में तू राधा का पुत्र नहीं, किन्तु कुन्ती का पुत्र है। पाण्डवों का सहोदर है । तेरा लालन-पालन राधा ने किया एतदर्थे तू राधेय कहलाता है, पर वस्तुतः तेरी माता कुन्ती है। पांडवों के साथ यदि तू मैत्री करता है तो जो भी राज्य पाण्डवों को प्राप्त होगा उसमें तेरा अधिकार मुख्य रहेगा क्योंकि तू पाण्डवों में सबसे बड़ा है । मैं तुझे पांडवों में मुख्य अधिकारी बनाऊंगा। ___ कर्ण ने कहा-कृष्ण ! आपका कथन सत्य है। मैंने दुर्योधन के साथ मित्रता की, वह उचित नहीं ! किन्तु जब सूतपुत्र समझकर लोग मेरी अवज्ञा करते थे उस समय उस अवज्ञा को मिटाने के लिए दुर्योधन ने मुझे राज्य दिया। उस समय मैंने दुर्योधन से कहा था"दुर्योधन ! मैं तुम्हारा जन्मभर मित्र रहूँगा। आज से ये मेरे प्राण तुम अपने ही समझना। मैं तुम्हारी प्रत्येक आज्ञा को सहर्ष स्वीकार करूंगा। अतः कृष्ण ! अब मैं दुर्योधन को छोड़कर धर्मराज से मैत्री करके विश्वासघाती नहीं बन सकता। मुझे अपने वचन का पालन करना होगा। आप मेरी माता कुन्ती से यह नम्र निवेदन करें कि मै आपके चार पूत्रों का प्राण हरण नहीं करूगा । मेरा मन बाल्यअवस्था से ही अर्जुन को जीतना चाहता है और युद्ध में भी उसे ही मारना चाहता है। युद्ध के मैदान में यदि मैं मर गया तो अर्जन जीवित रहेगा और अर्जुन मर गया तो मैं जीवित रहूँगा। इस प्रकार माता कुन्ती के पाँचों पुत्र जीवित रहेंगे।८
१८. महाभारत के अनुसार माता कुन्ती स्वयं कर्ण को यह समझाने जाती
है कि तू मेरा ही पुत्र है, अतः पाण्डवों के साथ मिल जा, किन्तु
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