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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण पत्नी द्रौपदी को पकड़कर भरी सभा में लाया। द्रौपदी को दुर्योधन ने अपनी जंघा पर बैठने के लिए कहा और दुःशासन उसके दुकूल को खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगा। जितने भी राजागण सभा में बैठे थे वे मौन रहकर यह अत्याचार देखते रहे। उस समय भीम ने यह प्रतिज्ञा ग्रहण की, कि मैं दुर्योधन की जंघा को चीरूँगा और दुःशासन की बाहु का भेदन करूंगा। युधिष्ठिर सत्यप्रतिज्ञ थे अतः वे धर्मराज के नाम से भी विश्रुत थे । द्यू त में पराजित होने से बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास पाण्डवों ने स्वीकार किया। दुर्योधन इस अवधि में भी पाण्डवों को मारने के अनेक उपाय करता रहा। पाण्डवों ने वनवास और अज्ञातवास में अनेक कष्ट सहन किये। चौदहवें वर्ष में वे विराट नगर में प्रकट हुए। श्रीकृष्ण को ज्ञात होने पर वे पाण्डवों को द्वारिका लाने के लिए विराट नगर जाते हैं। श्रीकृष्ण के प्रेम भरे आग्रह को सन्मान देकर पाण्डव द्वारिका आते हैं। द्वारिका निवासी माता कुन्ती के साथ पाण्डवों का व द्रौपदी का भव्य स्वागत करते हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर पाण्डवों ने बताया कि दुर्योधन ने हमारे साथ कितने अमानुषिक व्यवहार किये हैं। हमारा वध करने के लिए कितने-कितने उपक्रम किये हैं। दुर्योधन के भयंकर अत्याचार को सुनकर श्रीकृष्ण का खून खौल उठा। उन्होंने उसी समय चतुर, बुद्धिमान एवं भाषणकला में दक्ष द्र पद राजा के पुरोहित को सन्देश देकर दुर्योधन के पास हस्तिनापुर भेजा। कृष्ण का दूत भेजना :
दूत हस्तिनापुर पहुँचा। उस समय दुर्योधन राजसभा में द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, भीष्मपितामह, शल्य, जयद्रथ, कृपाचार्य, कृतवर्मा, भगदत्त, कर्ण, विकर्ण, सुशर्मा, शकुनि, भूरिश्रवा, चेदिराज,
२. महाभारत के अनुसार आरण्यवास में कुन्ती साथ नहीं गई, पर
जैन-ग्रन्थों के अनुसार गई थी। ३. महाभारत के अनुसार कृष्ण के संकेत से राजा द्रुपद अपना दूत
कौरवों की सभा में भेजता है-देखो महाभारत-उद्योगपर्व अ० २० वां, सचित्र महाभारत पृ० ३२६५ ।
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