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________________ २७४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण रानीसमूह उसके छेदे हुए अंगूठे के सौवें हिस्से की बराबरी करने के योग्य भी नहीं है। ___ नारद ऋषि राजा पद्मनाभ की अनुमति लेकर वहाँ से चल दिये। नारद के मुह से द्रौपदी की प्रशंसा सुनकर पद्मनाभ द्रौपदी के प्रति आसक्त हो गया। उसने अपने इष्टदेव का स्मरण किया । देव के उपस्थित होने पर राजा ने द्रौपदी को ले आने का अनुरोध किया। देव, सोई हुई दौपदी देवी को उठाकर राजा पद्मनाभ की अशोक वाटिका में ले आया। निद्राभंग होने पर नवीन वातावरण और स्थान देखकर द्रौपदी विमूढ़-सी हो गई। उसी समय पद्मनाभ ने आकर कहा-हे देवानुप्रिये ! तुम मन में संकल्प-विकल्प न करो। किसी भी प्रकार की चिन्ता न करो और मेरे साथ आनन्दपूर्वक विपुल काम भोगों को भोगती हुई रहो।' द्रौपदी आये हुए संकट की गंभीरता को समझ गई। उसने कौशल से काम लेने का निश्चय करके कहा-देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष की द्वारवती नगरी में मेरे पति के भाई कृष्ण वासुदेव रहते हैं। यदि वे छहमास के अन्दर मेरे उद्धार के लिए नहीं आयेंगे तो मैं आप देवानुप्रिय जैसा कहेंगे वैसा ही करूंगी। आपकी आज्ञा, उपाय, वचन तथा निर्देशन के अनुसार चलूगी।" राजा पद्मनाभ ने द्रौपदो की बात मान ली और उसे कन्याओं के अन्तःपुर में रखा । द्रौपदी निरन्तर षष्ठ-षष्ठ आयंबिल तपः कर्म से अपनी आत्मा को भावित करती हुई रहने लगी। १०. (क) तए णं सा दोवई देवी पउमणाभं एवं वयासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवेदोवेभारहेवासे वारवइए नयरीए कण्हे णामं वासुदेवे ममप्पियभाउए परिवसइ, तं जइ णं से छण्हं मासाणं ममं कूवं नो हव्वमागच्छई। —ज्ञातासूत्र १६ (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (८।१०।२०) और हरिवंश में १ ___ माह का उल्लेख है- न भोक्ष्ये मासपर्यन्तेऽप्यहं पति विना कृता । (ग) मासस्याभ्यन्तरे भूप यदीह स्वजना मम । नागच्छन्ति तदा त्वं मे कुरुष्व यदभीप्सितम् ।। -हरिवंशपुराण ५४१३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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