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द्रौपदी का स्वयवर और अपहरण
२७३ इसी कारण यह मेरा आदर नहीं कर रही है। इसका अप्रिय करना ही मेरे लिए श्रेयस्कर है।
इस प्रकार विचार कर वे वहाँ से चल दिये । आकाश मार्ग से उड़ते हुए धातकीखण्ड द्वीप के भरतक्षेत्र की अमरकंका नगरी में पहुँचे । वहाँ का राजा पद्मनाभ था, जो उस समय अपनी सातसौ रानियों के साथ अन्तःपुर में बैठा था। नारद सीधे उसके पास पहुँचे । राजा पद्मनाभ ने उनका आदर-सत्कार किया। नारद ने भी उनके कुशल समाचार पूछे ।।
राजा पद्मनाभ अपनी रानियों को असाधारण एवं अनुपम सौन्दर्यशालिनी मानता था। उसने नारद से पूछा-हे देवानुप्रिय ! आप अनेक ग्रामों नगरों यावत् घरों में प्रवेश करते हैं । मेरी रानियों का जैसा परिवार है, क्या आपने ऐसा परिवार अन्यत्र कहीं देखा है ? ___ नारद, पद्मनाभ की बात सुनकर खिल-खिलाकर हँस पड़े। बोले----पद्मनाभ ! तू कूपमण्डूक सदृश है । हे देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में हस्तिनापुर नगर है। वहाँ द्र पदराजा की पुत्री चूलनी देवी की आत्मजा, पाण्डुराजा की पुत्रवधू, और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी है। वह रूप लावण्य में उत्कृष्ट है। तेरा यह
(ख) त्रिषष्टि० ८।१०।२ (ग) हरिवंश पुराण के अनुसार द्रौपदी आभूषण धारण करने में व्यस्त थी अतः उसने नारद की ओर देखा नहीं।
-देखिए ५४।५, पृ० ६०६ ८. (क) ज्ञाताधर्म कथा अ० १६ (ख) भाविनी दुःखभागेषा कथं न्विति विचिन्तयन् । निर्ययौ तद्गृहात् क्रुद्धो विरुद्धो नारदो मुनिः ॥
-त्रिषष्टि० ८।१०।३ (ग) हरिवंशपुराण ५४।६-७ ६. (क) त्रिषष्टि० ८।१०।५-६
(ख) हरिवंशपुराण ५४१८-६
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