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द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरण
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के नाम अंकित कर दिये गये । स्वयंवर के दिन कृष्ण आदि सभी राजा अपने-अपने आसनों पर आसीन हुए । राजा द्रुपद ने पुनः सभी अतिथियों का स्वागत किया और श्रीकृष्ण वासुदेव के पास खड़े होकर श्वेत चंवर ढोरने लगे । द्रौपदी पूर्वभव में निदानकृत थी अतः उसने पाँच पाण्डवों के गले में माला डाली और बोली- मैंने
पाँच पाण्डवों का वरण किया है । कृष्ण वासुदेव प्रमुख सभी राजाओं ने महान् शब्द से उद्घोष किया - नृपवर ! कन्या द्रौपदी ने पाण्डवों का वरण किया, सो अच्छा किया। इसके पश्चात् राजा द्रुपद ने पाँचों पाण्डवों के साथ द्रौपदी का पाणिग्रहण कर दिया । राजा पाण्डु के आमंत्रण पर कृष्ण वासुदेव प्रमुख राजागण हस्तिनापुर पहुँचे । सभी पाण्डव तथा द्रौपदी देवी के कल्याण महोत्सव में सम्मिलित हुए ।
प्रस्तुत प्रसंग में श्रीकृष्ण वासुदेव को सभी राजाओं का प्रमुख बताया गया है। प्रथम दूत राजा द्रुपद ने उन्हीं के पास भेजा था । राजा द्रुपद श्रीकृष्ण वासुदेव के ऊपर चंवर ढोरने लगा, आदि बातें सिद्ध करती हैं कि श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व महान् था । वे अपने समय के एक विशिष्ट राजा थे ।
वैदिक परम्परा के ग्रन्थों के अनुसार स्वयंवर में राधावेध" की कसौटी रखी गई थी । वीर अर्जुन ने वह राधावेध किया जिससे द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला डाली । माता गांधारी को यह
४. “ पुव्वकयनियाणेणं चोइज्जमाणी चोइज्जमाणी जेणेव पंचपंडवा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते पंच पंडवे तेणं दसद्धवण्णेणं कुसुमदामेणं आवेढियपरिवेढियं करेइ, करिता एवं वयासी - एए गं मए पंच पंडवा वरिया ।"
— ज्ञाता धर्मकथा, अ० १६, पृ० ४८७ ५. पाण्डवचरित्र में देवप्रभसूरि ने भी राधावेध का उल्लेख किया है, अर्जुन ने राधावेध किया, द्रौपदी के मन में पाँचों पांडवों के प्रति राग जागृत हुआ, उसने अर्जुन के गले में माला डाली, पर माला पाँचों के गले में दीखने लगी । सभी विचार में पड़ गए। उसी समय चारणश्रमण आये और उन्होंने पूर्वभव का कथन किया और द्रौपदी ने पांचों का वरण किया - सर्ग० ४, पृ० १०५-१२२
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