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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण तु स्वेच्छा से जिस राजा या युवराज का वरण करे वही तेरा पति हो।
इसके पश्चात् राजा द्र पद ने अपने नगर कंपिलपुर में स्वयंवर के लिए भिन्न-भिन्न देशों के राजाओं को आमंत्रित किया। उन्होंने सर्वप्रथम निमंत्रण कृष्ण वासुदेव और उनके दशाह आदि राजपरिवार को दिया। - दूत द्वारा स्वयंवर में उपस्थित होने के निमंत्रण को जानकर कृष्ण ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और आदेश दिया कि सुधर्मा सभा में जाकर सामुदायिक भेरी बजाओ। दूत ने महोद्घोष से भेरी बजायी । भेगी की ध्वनि को श्रवण करते ही समुद्रविजय प्रमुख दश दशाह यावत् महासेन प्रमुख छप्पन हजार बलवर्ग स्नानकर विभूषित हो, वैभव, ऋद्धि व सत्कार के साथ कोई घोड़े पर बैठकर, कोई पैदल, श्रीकृष्ण वासूदेव के पास आये।
कृष्ण ने कौटुम्बिक पुरुषों को आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार करने का आदेश दिया । स्वयं स्नानादि से निवृत्त हो, वस्त्रालंकार से विभूषित हो, समस्त परिवार के साथ पाञ्चाल जनपद के कापिल्यनगर की सीमा पर पहुचे । स्थान-स्थान पर अनेकानेक सहस्र नप उपस्थित हुए। राजा द्रुपद ने कृष्ण वासुदेव आदि सभी राजाओं का कंपिलपुर से बाहर जा अर्घ्य और पाद्य से सत्कार सन्मान किया। सभी अपने अपने लिए नियत आवास में उतरे । द्र पद के कौटुम्बिक पुरुषों ने अशनादि से उनकी अभ्यर्थना की।
काम्पिल्य नगर के बाहर गंगा महानदी के सन्निकट एक विशाल स्वयंवर-मण्डप बनाया गया, स्वयंवर में रखे हुए आसनों पर राजाओं
२. (क) ज्ञातासूत्र अ० १६
(ख) पाण्डवचरित्र-देवप्रभसूरि सर्ग ४ ३. तए णं दुवए राया वासुदेवपामुक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आगमं
जाणेत्ता पत्त यं पत्त यं हत्थिखंध जाव परिवुडे अग्धं च पज्जं च गहाय सविड्ढीए कंपिल्लपुराओ निग्गच्छइ... जेणेव ते वासुदेव पामोक्खा बहवे रायसहस्सा तेणेव उवागच्छइसक्कारेइ, सम्माणेइ...
--ज्ञातासूत्र १६
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