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द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरण
द्रौपदी के स्वयंवर में श्रीकृष्ण :
सतीशिरोमणि द्रौपदी पाञ्चाल जनपद के अधिपति द्रपद राजा की पुत्री थी । उसकी माता का नाम चुलनी था ।' उसका रूप सुन्दर ही नहीं, सुन्दरतम था । ज्यों-ज्यों युवावस्था आती गई त्योंत्यों रूप भी निखरता गया । एक दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर वह अपने पिता द्रपद राजा को नमस्कार करने गई । पिता ने बड़े प्यार से उसे अपनी गोद में बिठाया । उस दिन द्रौपदी के रूप, यौवन और लावण्य को निहार कर राजा आश्चर्य चकित रह गया । उसने उसे स्नेह - स्निग्ध शब्दों में सम्बोधित करते हुए कहा - पुत्री ! यदि मैं किसी राजा या युवराज को तुझे भार्या के रूप में अर्पित करू तो संभव है तू सन्तुष्ट हो या न भी हो। इससे मेरे अन्तर्मानस में जीवन पर्यन्त सन्ताप बना रह सकता है अतः श्रेयस्कर यही है कि मैं स्वयंवर की रचना करूं और
१. ( क ) पंचालेसु जणवएसु कंपिल्लपुरे नामं नगरे होत्था तत्थणं दुवए नाम राया ''तस्स णं चुल्लणी देवी |
- ज्ञातासूत्र० अ० १६
(ख) त्रिषष्टि० ८|१०
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