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द्वारिका में श्रीकृष्ण
२२७ कुबेर द्वारा कृष्ण को उपहार भेंट :
कुबेर ने दो पीताम्बर वस्त्र, नक्षत्रमाला, हार, मुकुट, कौस्तुभ मणि, शाङ्ग धनुष, अक्षय बाण वाले तरकस, नन्दक नामक खड्ग, कौमुदी गदा, और गरुडध्वज रथ आदि श्रीकृष्ण को समर्पित किये। बलराम को वनमाला, मुसल, दो, नीले वस्त्र, तालध्वज रथ, अक्षय तरकस, धनुष और हल प्रदान किये।
श्रीकृष्ण के पूजनीय होने से दशाों को भी बहुमूल्य रत्नप्रदान किये। फिर वे सभी रथ में बैठकर द्वारिका में प्रविष्ट हुए।१० रुक्मिणी :
द्वारिका में श्रीकृष्ण आनन्द से रहने लगे। श्रीकृष्ण के राज्य में प्रजा बहत प्रसन्न थी। एक दिन नारद ऋषि द्वारिका में आये । उनकी इच्छा हुई कि मैं श्रीकृष्ण का अन्तःपुर देखू । कृष्ण की तरह कृष्ण की रानियां भी विनय व विवेक से सम्पन्न हैं या नहीं ? नारद अन्तःपुर में गये, उस समय सत्यभामा शृङ्गारप्रसाधन में लीन थी, दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देख रही थी। उसे नारद ऋषि के आने तक का पता न चला । कृष्ण की अन्य रानियों ने नारद का सत्कारसन्मान किया पर सत्यभामा नारद का सत्कार न कर सकी। नारद ने मन में सोचा- रूप के गर्व से उन्मत्त बनी हुई सत्यभामा सोचती है कि मैं कृष्ण की पट्टरानी हूँ ! इसका गर्व नष्ट होगा तभी
६. (क) उवाच कृष्णस्तं देवं या पूर्व पूर्वशाङ्गिणाम् ।
पूर्यत्र द्वारकेत्यासीत् पिहिता सा त्वयांभसा ॥ ममापि हि निवासाय तस्याः स्थानं प्रकाशय । तथा कृत्वा सोऽपि देवो गत्वेन्द्राय व्यजिज्ञपत् ।। शक्राज्ञया वैश्रवणश्चक्रे रत्नमयीं पुरीम् । द्वादशयोजनायामां नवयोजनविस्तृताम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।५ (ख) भव-भावना २५७१-२५६८
(ग) हरिवंशपुराण ४१।१५ से ३२ १०. (क) त्रिषष्टि० ८.५॥४१६-२४
(ख) हरिवंशपुराण ४१।३२-३७, पृ० ५०१
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