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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
यह समझेगी कि नारद ऋषि की उपेक्षा करने का क्या फल होता है। ऐसा विचार कर नारद ऋषि अन्तःपूर से लौट गये।११
नारद ऋषि अन्य ग्राम-नगरों में फिरते-फिरते कुण्डिनपुर पहुंचे। वहां भीष्मक राजा की पुत्री रुक्मिणी को देखा जो रूप में अप्सरा की तरह थी। रुक्मिणी ने नारद ऋषि को नमस्कार किया। नारद ने आशीर्वाद देते हुए कहा-अर्ध भरत क्षेत्र के अधिपति श्रीकृष्ण तुम्हारे पति होंगे ?१२
रुक्मिणी ने पूछा-ऋषिवर ! श्रीकृष्ण कौन हैं ? नारद ने विस्तार के साथ श्रीकृष्ण के रूप, ऐश्वर्य और शौर्य का वर्णन करते हुए कहा-वे एक महान् शक्तिसम्पन्न पुरुष हैं, उनके जैसा वीर एवं बलवान् अन्य कोई व्यक्ति नहीं है।
श्रीकृष्ण की प्रशंसा सुनकर रुक्मिणी मन ही मन कृष्ण के प्रति अनुरक्त हुई और उसने प्रतिज्ञा की कि इस भव में मैं कृष्ण को ही अपना पति बनाऊंगी।
नारद ऋषि वहां से अपने स्थान पर आये और उन्होंने रुक्मिणी का एक सुन्दरतम रूप चित्रित किया। फिर वह चित्रपट लेकर नारद द्वारिका गये । अद्भुत चित्रपट को देखकर कृष्ण चित्रलिखित से रह गये । श्रीकृष्ण ने चित्र में चित्रित सुन्दरी का परिचय पूछा । नारद ने रुक्मिणी का विस्तार से परिचय दिया। श्रीकृष्ण ने पत्र देकर एक दूत भेजा। पत्र पढ़कर रुक्मिणी के भाई रुक्मि ने स्पष्ट इन्कार करते हुए कहा- मैं अपनी बहिन ग्वाले को न देकर दमघोष के पुत्र शिशुपाल को दूगा।
११. (क) त्रिषष्टि० ८।६७-६
(ख) भव-भावना २६३८-३६
(ग) हरिवंशपुराण ४२।२४-२६ १२. (क) त्रिषष्टि० ८।६।१०-१३
(ख) भव-भावना २६४०-४२
(ग) हरिवंशपुराण ४२।३०-४२, पृ० ५०७ १३. (क) त्रिषष्टि० ८।६।१४-२१
(ख) भव-भावना २६४३-४४ (ग) हरिवंशपुराण ४२१४३-४८
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