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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण क्रोष्टुकी के कहने से समुद्रविजय ने उग्रसेन सहित मथुरा और सौर्यपुर छोड़कर विन्ध्याचल की ओर प्रस्थान किया। ___ इधर सोम राजा ने जरासंध को सारा वृत्तान्त सुनाया। कहायादव किसी भी प्रकार कृष्ण और बलराम को देंगे नहीं । वे आपको चुनौती देते हैं, कहते हैं-आप हमारा क्या बिगाड़ सकते हैं ? कंस की तरह हम जरासंध को भी यमधाम पहुँचा देंगे । कालकुमार को मृत्यु :
जरासंध यादवों की उद्धतता को देखकर क्रोध से तिलमिला उठा। उसने मेघ-गंभीर गर्जना करते हुए कहा-यादव मेरे सामने किस बाग की मूली हैं । मैं उन्हें समाप्त कर दूंगा। उसने उसी समय अपने पुत्र कालकुमार को विराट् सेना के साथ रवाना किया। कालकुमार ने प्रतिज्ञा ग्रहण की कि चाहे यादव अग्नि में प्रवेश कर गये हों, या किसी पर्वत की गुफा में छिप गये हों, कहीं पर भी क्यों न हों, मैं उन्हें पकड़कर मार दूंगा।' कालकुमार यादवों का पीछा करता हुआ विन्ध्याचल की अटवी में पहुँच गया, जहां से यादव जा रहे थे । कालकूमार को सन्निकट आया हुआ जानकर श्रीकृष्ण के रक्षक देवों ने एक द्वार वाले विशाल दुर्ग का निर्माण किया, और
टिप्पणी-हरिवंशपुराण के अनुसार जीवयशा के द्वारा सूचना
मिलते ही जरासंध ने यादवों को मारने के लिए अपने काल-यवन नामक पुत्र को भेजा, उसके साथ यादवों ने सत्तरह बार युद्ध किया। अन्त में अतुल मालावत पर्वत पर वह मर गया, उसके बाद जरासंध ने अपने भाई अपराजित को भेजा, उसने यादवों के साथ तीन सौ छयालीस बार युद्ध किया । अन्त में वह भी कृष्ण के बाणों से मारा गया। कृष्ण और बलभद्र आनन्दपूर्वक मथुरा में वास करते रहे। अपराजित के निधन के समाचार सुनकर जरासंध युद्ध के लिए प्रस्थान करता है तब पाण्डव मथुरा छोड़कर द्वारिका की ओर जाते हैं । देखो-हरिवंशपुराण सर्ग ३६।६५-७५ और सर्ग ४०११-२३
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