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गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण
२१९ अपने पिता को सारी करुण-कहानी सुनाई। जरासंध ने कहा-अरे जीवयशा ! कंस ने पहले ही गलती की। जब अतिमुक्त मुनि से उसे भविष्य मालूम हो गया था तब देवकी को ही समाप्त कर देना था । 'न बांस रहता और न बांसुरी बजती।' अब भी तू चिन्ता न कर । मैं तेरे शत्र का विनाश कर दूगा ।५८ सत्यभामा के साथ पाणिग्रहण :
श्रीकृष्ण और बलदेव के कहने से समुद्रविजय जी ने उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया। उग्रसेन ने अपनी पुत्री सत्यभामा का पाणिग्रहण श्रीकृष्ण के साथ कर दिया ।५९ हरिवंशपुराण के अनुसार विद्याधरों के राजा सुकेतु ने अपनी पुत्रो सत्यभामा के साथ कृष्ण का विवाह किया।६० सोमक का आगमन :
जीवयशा की प्रेरणा से जरासंध ने सोमक नामक राजा को बुलाया। उसे सारी स्थिति समझाते हुए कहा कि तुम समुद्र विजय जी के पास जाकर कहो कि कंस के शत्र बलराम और श्रीकृष्ण को हमें सौंप दो । नहीं सौंपोगे तो तुम्हें जरासंध का कोपभाजन बनना पड़ेगा।
सोमक ने जाकर समुद्रविजय जी को जरासंध का सन्देश सुनाया ।६१
उत्तर में समुद्रविजय जी ने कहा-कंस ने बलराम और कृष्ण के निरपराध भाइयों की हत्या की थी अतः भाइयों के वध के अपराधी केस को यदि इन्होंने मारा तो इसमें कृष्ण और बलराम का क्या अपराध है ? ये दोनों निर्दोष हैं ।६२
५८. (क) त्रिषष्टि० ८५।३३५-३३८
(ख) हरिवंशपुराण ३६।६५-६६ ५६. (क) त्रिषष्टि० ८।५।३३३-३४
(ख) भव-भावना ६०. हरिवंशपुराण ३६।५३-६१, पृ० ४६७-६८ ६१. (क) त्रिषष्टि ० ८।५।३४०-३४३
(ख) भव-भावना २५००-२५०२
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