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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण आसन पर बलराम को और गोद में श्रीकृष्ण को बिठाया । प्यारे पुत्र के मिलन से वसुदेव के रोम-रोम में प्रसन्नता छलक रही थी। वसूदेव के अन्य ज्येष्ठ भ्राताओं ने पूछा--भाई, ये दोनों बालक कौन हैं ? वसुदेव ने अतिमुक्तकुमार की भविष्यवाणी आदि समग्र पूर्वकथा सुनादी ।५५ ____ यादवों ने कहा-अरे वसुदेव ! आप स्वयं महान् शक्तिसम्पन्न हैं, फिर आपके ही सामने आपके जनमते हुए बच्चों को कंस ने मार दिया ! यह सब आपने कैसे सहन किया। __वसुदेव-- मैं जन्म से ही सत्यव्रत का पालक रहा हूं, उस व्रत की सुरक्षा के लिए मुझे यह सारा अत्याचार सहन करना पड़ा। देवकी के अत्याग्रह से मैं नन्द की लड़की यहां लाया, और कृष्ण को नन्द के घर छोड़ आया ।५६ ।
सभी यादवों की सम्मति से उग्रसेन को कारागृह से मुक्त कर दिया गया तथा कंस का अग्निसंस्कार किया गया ।५७ __कंस की पत्नी जीवयशा ने जब सुना कि उसके पति को कृष्ण ने मार डाला है तो वह आपे से बाहर हो गई। क्रोध से दांत पीसने लगी और मुह से बड़बड़ाने लगी- "मैं यादव कुल का नाश कर दूंगी। मेरे पति की हत्या की गई है।" वह वहां से भागकर अपने पिता प्रतिवासुदेव जरासंध के पास पहुँची। रोते और बिलखते हुए उसने
५४. (क) त्रिषष्टि० ८।५।३१४-३१६
(ख) हरिवंशपुराण ३६।४६-४७, पृ० ४६६
(ग) भव-भावना २४७८-२४७६ ५५. (क) त्रिषष्टि ० ८।५।३१८-३२०
(ख) भव-भावना २४८०-२४८६ ५६. वसुदेवोऽप्युवाचैवमाजन्म परिपालितम् ।
सत्यव्रतं त्रातुमहं दुःकर्मेदं विसोढवान् । देवक्याश्चाग्रहेणायं कृष्णः प्रक्षिप्य गोकुले । यमारक्षि नंदसुतां संचार्येमां वराकिकाम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।५।३२३-३०६ ५७. त्रिषष्टि ० ८।५।३२८-३२६
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