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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण सोमक- स्वामी की आज्ञा का पालन करना आपका कत्र्तव्य है।
श्रीकृष्ण ने बीच में ही गरज कर कहा-जरासंध हमारा स्वामी नहीं है। आज तक हम उसकी आज्ञा स्नेह से मानते रहे, पर अब हम उसकी आज्ञा को नहीं मानेंगे । वह भी एक प्रकार से कस का ही साथी है ।
सोमक- समुद्रविजय ! तुम्हारा यह लड़का तो कुलांगार है ?
अनाधृष्टि ने बीच में ही उसकी बात को काटते हुए कहाअरे सोमक ! हम तेरे अमर्यादित वचनों को कदापि सहन नहीं कर सकते । तू अहंकार से फूल रहा है। पर हम तेरा मिथ्या अहंकार एक क्षण में नष्ट कर देंगे।
तिरस्कृत किया हुआ सोमक वहां से उलटे पैरों लौट गया ।६४
६२. त्रिषष्टि० ८।५।३४४-३४७ ६३. (क) त्रिषष्टि० ८।५।३५१-५२
(ख) भव-भावना २५११ ६४. त्रिषष्टि० ८।५।३५७
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