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गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण
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कृष्ण का धनुष्य चढ़ाना :
एक दिन श्रीकृष्ण वृन्दावन में क्रीडा कर रहे थे। उस समय कंस का केशी नामक अश्व यमराज की तरह हिनहिनाता हुआ वहां पर आया। लोगों को वह मारने लगा। भिणी गायों को नष्ट करने लगा। कृष्ण ने देखा वृन्दावनवासी उसके उपद्रवों से घबरा रहे हैं। श्रीकृष्ण ने उसे उसी क्षण मार दिया।२९
इसी तरह खर और मेंढा को भी उन्होंने समाप्त कर दिया। इन पशुओं को समाप्त क्या किया, मानो कंस को ही समाप्त कर दिया हो, इस प्रकार कंस को भय लगने लगा । तथापि अपने शत्र की अच्छी तरह से परीक्षा लेने के लिए उसने शाङ्ग धनुष्य की पूजा का आयोजन किया। शाङ्ग धनुष्य के पास अपनी बहिन सत्यभामा को बिठलाया, साथ ही कंस ने यह उद्घोषणा की कि जो इस शाङ्ग धनुष्य को चढ़ाएगा, उसी के साथ सत्यभामा का पाणिग्रहण किया जायेगा। शाङ्ग धनुष्य के महोत्सव में अनेक राजा गण उपस्थित हुए।
वसुदेव की एक पत्नी मदनवेगा का पुत्र अनाधृष्टि भी उस उत्सव में सम्मिलित होने के लिए शौर्यपुर से मथुरा के लिए प्रस्थित
पुच्छे धरिऊण चिरं भामइ कोऊहलेण अह पच्छा। कुच्छीए हओ मुट्ठीए तह इभो जह गओ निहणं ।। पीणपओहरवच्छत्थलाहिं हरिसागयाहिं गोवीहिं । आलिंगिज्जइ कण्हो पुणो-पुणो पयडरागाहिं ।।
-भव-भावना २३६८-२३७५ २६. (क) त्रिषष्टि० ८।५।२१७-२२०
(ख) भव-भावना २३७६-२३७७ ३०. (क) कंसस्य खरमेषौ तु तत्राटती खरोजसौ । अन्येद्य र्लीलया कृष्णो निजघान महाभुजः ॥
-त्रिषष्टि० ८।४।२२१ (ख) भव-भावना २३८१ ३१. त्रिषष्टि० ८।५।२२३-२२४
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