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भगवान अरष्टनेमि और श्री कृष्ण लगी। वह बुरी तरह घबरा गया। उसने उसी क्षण शत्र का पता लगाने के लिए अरिष्ट आदि चारों बलवान् पशुओं को वृन्दावन में छोड़ दिया। चाणूर और मुष्टिक नामक पहलवानों को बुलाकर आदेश दिया कि प्रतिदिन व्यायाम आदि कर अपने शरीर को अत्यन्त पुष्ट बनावें ।२७
अरिष्टनामक बैल ज्योंही वृन्दावन में पहुँचा त्योंही ग्रामवासियों को परेशान करने लगा। वह कभी गायों को त्रस्त करता कभी स्त्री-पुरुषों को। कभी किसी के घर में घुसकर वस्तुओं को हानि पहुँचाता, कभी दही दूध, और घी के बर्तनों को ही फोड़ देता ! सभी लोग उसके उपद्रव से त्रस्त हो गये। सभी लोगों ने श्रीकृष्ण
और बलराम से फरियाद की। श्रीकृष्ण उसे पकड़ने के लिए ज्योंही सामने गये त्योंही वह क्रोध से नथुने फूलाता हुआ कृष्ण को ही मारने दौड़ा ! श्रीकृष्ण ने उसी क्षण दोनों सींग पकड़कर गला मरोड़ा और उसके जीवन का अन्त कर डाला। सारे गोकुलवासी प्रसन्नता से झूम उठे ।२८
२७. (क) स्वारि ज्ञातुमथो कंसोऽरिष्टादीनमुचढने । चाणूरमुष्टिको मल्लावादिदेश श्रमाय च ।।
___ --त्रिषष्टि ० ८।५।२०८ (ख) भव-भावना २३६०-२३६२ २८. (क) त्रिषष्टि० ८।५।२०६-२१६ (ख) कण्होऽवि रामसहिओ कीलतो भमइ तम्मि गोम्मि ।
अह अन्नया य सरओ समागओ परमरमणिज्जो ॥ 'अह सो अरिढुवसहो अरिट्ठफलसन्निभोकसिणदेहो । कालोव्व परिभमंतो समागओ तम्मि गोट्टम्मि । मयमत्तो सो बलवं ढिक्कियसदेण सयलगोवग्गं । वित्तासइ गोवियणं मारइ गेहाई भंजेइ । इअ असमंजसकारी दिट्ठो कण्हेण सो महावसहो । तो तयभिमुहो धावइ वारिज्जंतोऽवि गोवींहिं ।। जो कोडिसिलं उक्खिवइ तस्स किं गण्णमेक्कगोमेत्ते । तो लीलाए सह तेण जुज्झए विविहभंगेहिं ।'
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