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गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण
२०७ __ निमित्तज्ञ ने दृढ़ता के साथ कहा-राजन् ! मुनि का कथन कभी भी मिथ्या नहीं होता। वह पूर्ण सत्य है । तुम्हारा अन्त करने वाला, देवकी का सातवां गर्भ उत्पन्न हो गया है और वह किसी स्थानविशेष पर अभिवृद्धि को प्राप्त हो रहा है। यदि तुम उसकी परीक्षा लेना चाहो तो जो अरिष्टनामक तुम्हारा शक्ति सम्पन्न वृषभ है, केशी नामक जो महान् अश्व है, दुर्दान्त खर और मेष हैं, उन्हें वृन्दावन में खुले छोड़ दो। जो इन चारों को क्रीड़ा-करते-करते मार डाले उसे ही तुम देवकी का सातवां गर्भ रमझना ।२५
निमित्तज्ञ ने कुछ देर रुककर पुनः कहा-ज्ञानियों ने बताया है कि भुजा के बल में वासुदेव सामान्य व्यक्तियों से अधिक समर्थ होते हैं । आपका शत्र, वासुदेव है, वह महाक र कालियनाग का दमन करेगा और तुम्हारे पद्मोत्तर व चम्पक नाम के बलिष्ठ हाथियों को भी मारेगा । वही व्यक्ति एक दिन तुम्हारे प्राणों का अन्त करेगा ।२६ ___इस प्रकार निमित्तवेत्ता के कथन को श्रवण करते ही कंस के रोंगटे खड़े हो गये । साक्षात् मृत्यु उसकी आंखों के सामने नाचने
२५. (क) नैमित्तिकोऽप्यभाषिष्ट न मृषा ऋषिभाषितम् ।
सप्तमो देवकी गर्भः क्वचिदस्ति तवांतकृत् ।। अरिष्टो यस्तवोक्षास्ति केशी नाम महाहयः । ख रमेषौ च दुर्दान्तौ मुच वृन्दावनेऽथ तान् । गिरिसारानप्यमून् यस्तत्र क्रीडन् यदृच्छया । हनिष्यति स हंता ते देवक्याः सप्तमः सुतः ॥
-त्रिषष्टि० ८।१२०२-२०४ (ख) भव-भावना २३५२ से २३५६ २६. (क) अन्यच्च यत्क्रमायातं शाङ्ग धन्वत्वदोकसि ।
पूज्यमानं त्वज्जनन्या स एवारोपयिष्यति । आख्यातं ज्ञानिना यत्तद्भविष्यति भविष्यतः । दोष्मतो वासुदेवस्य दुःस्पर्शमितरैर्जनैः ।। कालियाहेः स दमकश्चाणरस्य च घातकः । पद्मोत्तरं चंपकं च हनिष्यति तव द्विपौ ।।
-त्रिषष्टि० ८।५।२०५-२०७ (ख) भव-भावना गा० २३५७-२३५६
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