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________________ अठारह | है उन्हें राधा और गोपी-वल्लभ के रूप में चित्रित किया गया है पर जैन साहित्य में उनके उस रूप के दर्शन नहीं होते हैं । श्रीकृष्ण के जीवन की अनेक घटनाएँ जो जैन साहित्य में हैं, वैसी ही घटनाएं शब्दों के हेर-फेर के साथ वैदिक साहित्य में भी हैं । किस संस्कृति ने किससे कितना लिया यह कहना अत्यन्त कठिन है । महापुरुष सूर्य, चांद, हवा और पानी की तरह होते हैं वे किसी भी सम्प्रदाय विशेष की धरोहर नहीं होते । उनका सार्वभौमिक व्यक्तित्व प्रत्येक के लिए अनमोल निधि है । महापुरुष को सम्प्रदाय विशेष के घेरे में आबद्ध करना उनके प्रति अन्याय करना है । साम्प्रदायिक ग्लास के चश्में को उतार कर ही महापुरुष को देखने से उनका वास्तविक रूप समझ में आ सकता है । मैंने प्रस्तुत ग्रन्थ में किसी सम्प्रदाय विशेष की आलोचना प्रत्यालोचना न कर श्रीकृष्ण के वास्तविक रूप को रखने का प्रयास किया है, मैं कहाँ तक इस प्रयास में सफल हो सका हूँ इसका निर्णय प्रबुद्ध पाठकों पर छोड़ता हूँ । यह पूर्ण सत्य है कि जितना श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में वैदिक साहित्य में विस्तार से लिखा गया है उतना भगवान् श्रीअरिष्टनेमि के सम्बन्ध में नहीं । वैदिक और अन्य साहित्य से जितने भी प्रमाण मुझे प्राप्त हुए हैं वे भगवान् अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता शीर्षक में दिये हैं । वैदिक हरिवंशपुराण में भी महर्षि वेद व्यास ने श्रीकृष्ण को अरिष्टनेमि का चचेरा भाई माना है । उन्होंने यदुवंश का परिचय देते हुए लिखा है कि महाराजा यदु के सहस्रद, पयोद, कोष्टा, नील और अंजिक नाम के देवकुमारों के तुल्य पांच पुत्र हुए । क्रोष्टा की माद्री नामक द्वितीय रानी से युधाजित् और देवमीढुष नामक दो पुत्र हुए । कोष्टा के ज्येष्ठ पुत्र युधाजित् के वृष्णि और अंधक नाम के दो पुत्र हुए । वृष्णि के भी दो पुत्र हुए, एक का नाम स्वफल्क और दूसरे का नाम चित्रक था । स्वफल्क के अक्रूर नामक महादानी पुत्र हुआ । चित्रक के पृथु, विपृथु, अश्वग्रीव, अश्वबाहु, सुपार्श्वक, गवेषण, अरिष्टनेमि, अश्व, सुधर्मा धर्मभृत, सुबाहु, बहुबाहु नामक बारह पुत्र और श्रविष्ठा तथा श्रवणा नामक दो पुत्रियाँ हुई। यहां पर यह स्मरण रखना चाहिए कि श्रीमद्भागवत में वृष्णि १. हरिवंश पर्व १ अध्याय ३३, श्लोक १ २. हरिवंश १।३४।१-२ ३. वहीं ० १।३४।३ ४. वहीं ० १।३४।११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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