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| उन्नीस
के दो पुत्रों का नाम स्वफल्क तथा चित्ररथ (चित्रक) दिया है। चित्ररथ (चित्रक) के पुत्रों का नामोल्लेख करते हुए "पृथुविपृथु धन्याद्याः" लिखा है, ऊपर पाठ में "पृथुर्विदूरथाद्याश्च" का उल्लेख कर केवल तीन और दो पुत्रों के नाम लिखकर आगे प्रभृति लिख दिया है ।
हरिवंश में अरिष्टनेमि के वंश वर्णन के साथ ही श्रीकृष्ण का वंश वर्णन भी दिया है । यदु के क्रोष्टा, क्रोष्टा के द्वितीय पुत्र देवमीढुष के पुत्र शूर और उनके पुत्र वसुदेव प्रभृति दश पुत्र तथा पृथ्कीति आदि पांच पुत्रियां हुई। वसुदेव की देवकी नामक रानी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
सारांश यह है कि वैदिक परम्परा की दृष्टि से भी श्रीकृष्ण और अरिष्टनेमि ये दोनों चचेरे भाई सिद्ध होते हैं। दोनों के परदादा युधाजित् और देवमीढुष सहोदर थे।
वैदिक और जैन संस्कृति की परम्परा में यही अन्तर है कि जैन साहित्य में अरिष्टनेमि के पिता समुद्र विजय वसुदेव के बड़े भ्राता हैं जबकि वैदिक हरिवंशपुराण के अभिमतानुसार चित्रक और वसुदेव चचेरे भाई थे। चित्रक का ही श्रीमद्भागवत में चित्ररथ नाम आया है । संभव है चित्रक या चित्ररथ का ही अपर नाम समुद्रविजय रहा हो। दोनों परम्परा के नामों में जो अन्तर है उसके मूल कारण अनेक हो सकते हैं।
हमने ग्रन्थ के परिशिष्ट में वंश का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने हेतु चार्ट भी दिया है । तथा भौगोलिक परिचय आदि भी।
भगवान् श्री अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण की तुलना करने पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्य हमारे सामने आते हैं ।
५. हरिवंश पर्व १, अ० १४, श्लोक १४-१५ ६. देवभागस्ततो जज्ञे, तथा देवश्रवा पुनः ।
अनाधृष्टि कनवको, वत्सवानथ गृजिमः ॥२१ श्यामः शमीको गण्डूषः पंच चास्य वरांगनाः । पृथकीर्ति पृथा चैव, श्रुतदेवा श्रुतश्रवाः ॥२२ राजाधिदेवी च तथा, पंचते वीरमातरः ॥२३
-हरिवंश, १॥३४॥ ७. वसुदेवाच्च देवक्यां, जज्ञे शौरि महायशाः ।
-हरिवंश पुराण पर्ब १, अ० ३५, श्लोक ७ ।
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