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भारतीय साहित्य में श्रीकृष्ण
१८३ बसो मेरे नैनन में नन्दलाल, मोहनी मूरति साँवरि सूरति नैना बने रसाल। मोर मुकुट मकराकृति कुण्डल अरुन तिलक दिए भाल । मीरा प्रभु संतन सुखदायी, भक्तवच्छल गोपाल ।।
गदाधर भट्ट, स्वामी हरिदास, श्री भट्ट, व्यासजी, ध्र वदास, नागरीदास, अलबेली अलिजी, चाचा हितवृदावनदास जी, भगवत रसिक आदि भक्तिकाल के कवियों ने, व रीतिकाल तथा आधुनिक काल के कवियों ने भो कृष्ण पर बहुत कुछ लिखा है।७१ बंकिमचन्द्र चटर्जी का कृष्णचरित्र, हरिऔधजी का प्रियप्रवास, कन्हैयालाल माणिकलाल मुशी का कृष्णावतार आदि आधुनिक युग की सुदर कृतियां हैं। यूनानी लेखकों का उल्लेख :
चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्त यूनानी राजदूत मैगस्थनीज ने अपने जो संस्मरण लिखे थे, वे मूलरूप में इस समय उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उसके कुछ अवतरण एरियन नामक एक दूसरे यूनानी लेखक की रचना में मिलते हैं। उसमें मैगस्थनीज का कृष्ण-सम्बन्धी अवतरण इस प्रकार है___ 'वह भारतीय हरक्लीज़ (हरिकृष्ण) अपनी शारीरिक और आत्मिक शक्ति में समस्त जनसमुदाय में बढ़ हुए थे। उन्होंने भूमण्डल को पाप से मुक्त कर दिया था और अनेक नगरों की स्थापना की थी। उनके देहावसान के पश्चात् उनके प्रति देवताओं के समान श्रद्धा व्यक्त की गई थी। उन हरक्लोज (हरिकृष्ण) के प्रति शौरसेनाइ (शूरसेन जनपद के निवासी) लोगों की विशेष रूप से पूज्य दृष्टि है। शौरसेनाइ लोगों के प्रदेश में दो बड़े नगर हैं, जिनके नाम मथुरा तथा क्लीसोवोरा (कृष्ण पुरा। हैं और जिनके निकट जोबरेस (यमुना) नदी बहती है जिसमें नावें चलती हैं.२ ।'
७१. देखिए -हिन्दी साहित्य का इतिहास--रामचन्द्र शुक्ल । ७२. श्री ई० जे० चैनोक कृत 'इण्डिका' से अनुवादित ग्रन्थ से ।
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