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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
उपसंहार: __इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संस्कृति की जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों धाराओं ने कर्मयोगी श्रीकृष्ण के जीवन को विस्तार और संक्षेप में युगानुकूल भाषा में चित्रित किया है। जहाँ वैदिक परम्परा ने विष्णु का पूर्ण अवतार मानकर श्रद्धा और भक्ति से कृष्ण की स्तवना की है वहाँ जैन परम्परा ने भावी तीर्थंकर और श्लाघनीयपुरुष मानकर उनका गुणानुवाद किया है ; तथा बौद्ध परम्परा ने भी बुद्ध का अवतार मानकर उनकी उपासना की है।
यह सत्य है कि उपासकों ने अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार महापुरुषों को चित्रित किया है। यही कारण है कि कथाओं के विविध प्रसंग लेखक की दृष्टि से बदलते रहे हैं। वैदिक परम्परा में जो रूप हैं वह जैन परम्परा से कुछ पृथक है, यहाँ तककि श्वेताम्बर दिगम्बर जैन लेखकों में भी मतभेद है। बौद्ध परम्परा की कथा तो काफी स्वतंत्र रूप लिए हुए है।
हम अगले अध्यायों में समन्वय की दृष्टि से ही श्रीकृष्ण के विराट व्यक्तित्व और कृतित्व का विश्लेषण करेंगे। किसी भी परम्परा का खण्डन करना हमारा लक्ष्य नहीं है । हमारा लक्ष्य केवल विविध दृष्टिकोणों का निदर्शन एवं सत्य तथ्य का विश्लेषण करना है।
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